सिंगोली। संसार का प्रत्येक कार्य; कार्य और कारण व्यवस्था पर आधारित है। इसे निमित्त-नैमित्तिक व्यस्था भी कहा जाता है। एक निमित्त की उपस्थिति में कई कार्य सम्पन्न होते है, तो कई निमित्त कारण के मिलने पर एक कार्य सम्पन्न होता है। कर्म और कर्म का फल, इसी प्रकार अन्य सभी व्यस्थाएँ कारण-कार्य के बिना नहीं चल पाते है। आत्म को संसार में बांधे रखने में कर्म तो निमित है। व्यक्ति का स्वयं का परिणाम उसे संसार भ्रमण करा रहा है यह बात नगर में चातुर्मास हेतु विराजमान आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज से शिक्षित व वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनि श्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने 30 अक्टूबर सोमवार को प्रातः काल धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि अपने अपरिणामों को सही रखने हेतु शास्त्रिय ज्ञान की अपेक्षा अनुभव गम्य मन की आवश्यकता है। मन से यह परिणाम दूर करने के लिए गुरु का सान्निध्य, शास्त्र का अध्ययन और देव की सच्ची पूजा किया करो। सच्चे देवशास्त्र-गुरु की सेवा-पूजा, वन्दना कर्मों का नाशकर सुख की उपलब्धि करती है। इस अवसर पर समाजजन उपस्थित थे।