नीमच। मालवा-मेवाड़ में जहां सोयाबीन, गेंहू, चना, रायड़ा और लहसुन की फसलों की बंपर पैदावार होती है वहीं ये क्षेत्र अपनी एक विशेष खेती के लिए देश में प्रसिद्ध है जिसे अफीम की खेती कहते है।
अफीम की खेती करने वाला किसान अफीम को बुवाई से लेकर पकने तक उसका रखरखाव अपनी औलाद के जैसे करता है। परिवार का हर सदस्य अफीम की खेती को लेकर इतना व्यस्त रहता है की 03 महीनों तक कहीं आना जाना भी भूल जाता है। दिन हो या रात चाहे कड़ाके की ठण्ड हो अफीम के खेत की निगरानी किसी खजाने की तरह करता है।
वहीं इस समय जब अफीम के पौधो में फूल आने लगे हैं तो किसान ओर भी ज्यादा सतर्क हो गया है। क्योंकि अभी से आने वाला 01 महीना उसके लिए बहुत ही संवेदनशील रहता है। जहां रतलाम-मंदसौर-नीमच-प्रतापगढ़ और चित्तौड़गढ़ अफीम की खेती करने वालों का बाहुल्य क्षेत्र है तो वहीं अफीम और डोडाचूरा के तस्करों का गढ़ भी है। क्षेत्र में कई ऐसे मामले सामने आए है जिनमें खेतों से डोड़ो सहित अफीम की फसल चोरी हुई है और बहुत से किसानो का चोरों से आमना सामना होने पर नुकसान भी हुआ है। किसानों को अपनी फसल को बचाने के लिए मारपीट तक का सामना करना पड़ा है।
अफीम किसान अभी इसलिए भी चिंतित है कि अगर अफीम डोड़ो की चोरी होती है तो अफीम नीति के तहत पट्टा कट सकता है और दौबारा पट्टा मिलना बहुत ही मुश्किल होता है। इसलिए अफीम किसानों ने सुरक्षा की दृष्टि से अफीम की फसल की निगरानी के लिए व्यवस्थाए चाक चौबंद कर दी है।
मालवा-मेवाड़ का किसान अब हाईटेक हो गया है। किसान भी आधुनिकता के युग में अफीम की खेती की निगरानी के लिए अब तीसरी नजर का उपयोग कर रहा है। ऐसा ही कुछ कमाल किया है मनासा के अफीम किसान राकेश पाटीदार ने।
अफीम किसान राकेश पाटीदार ने अपनी अफीम फसल को चोरों सहित जंगली जानवर और परिंदो से बचाव के लिए अत्याधुनिक तकनीक का इस्तेमाल किया है। किसान पाटीदार ने अपने अफीम के खेत में चारों ओर हाईटेक कैमरे लगाए है। इन कैमरों के उपयोग से अफीम के खेत की निगरानी घर बैठे ही कर सकते है।
जानिए इन हाईटेक कैमरों की विशेषता-
इन कैमरों में ऑटो रोटेट, ह्यूमन डिटेक्शन, रात में भी फूल रंगीन कलर, मोशन ट्रेकिंग, मोशन डिटेक्शन, सायरन, वायस कॉलिंग, सौर ऊर्जा से चलना, मोबाइल से कंट्रोलिंग, परिंदा भी पर मारेगा तो नोटिफिकेशन और शॉर्ट वीडियो बनाकर मोबाइल पर अलर्ट भेजेगा।