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November 10, 2022, 8:20 pm
KHABAR : मुनि पीयूषचंद्र विजय जी महाराज ने कहा- अंतरात्मा के दोषों को सुधारे बिना चातुर्मास सफल नहीं होता है, धर्म तपस्या को अंगीकार किए बिना मानव जन्म पशु समान होता है,  पढ़े खबर 

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नीमच। संसार में मनुष्य सदैव दूसरों के दोषों को देखता है जबकि धर्म शास्त्र यह कहते हैं कि यदि अपनी आत्मा कल्याण करना है तो स्वयं के दोषों  को देखना होगा जब तक हम स्वयं के दोष को नहीं देखेंगे तब तक हमारी आत्मा कल्याण नहीं हो सकता है।अंतरात्मा के दोषों को सुधारे बिना चातुर्मास सफल नहीं हो सकता है।यह बात गच्छाधिपति आचार्य देवेश श्रीमद् विजय श्री ऋषभ चंद्र सुरीश्वर जी मसा के शिष्य रत्न वरिष्ठ मुनिराज पियुष चंद्र विजय मुनि महाराज ने कही। 

वे श्री जैन श्वेतांबर भीड़भंजन पार्श्वनाथ मंदिर श्री संघ नीमच,व महावीर जिनालय विकासनगर के संयुक्त तत्वावधान विकास नगर स्थित मनो शांति भवन के समीप परिसर  में लोढ़ा परिवार द्वारा आयोजित धर्मसभा में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि श्री संघ संत के माता-पिता होते हैं ।उसे तीर्थ का दर्जा प्राप्त होता है। चातुर्मास में 4 माह तक संत यह कहते हैं कि मोह का त्याग करो। 4 माह  केअंत में श्रद्धालु भक्तों ने संत में ही मोह उत्पन्न कर लिया और सभी उदास हो रहे हैं यह चिंतन का विषय है ।मोह का त्याग ही आत्म कल्याण का मार्ग प्रशस्त करता है। इसलिए मोह को त्याग कर आत्म कल्याण की राह पर आगे बढ़े।

महावीर ने गौतम को मोह छुड़ाया तभी वह केवल ज्ञान को प्राप्त हुए और उनकी आत्मा का कल्याण हो सका था। साधु संतों को सदैव  आशीर्वाद प्रदान कर सदैव मुस्कुराते हुए आगे वालों के कल्याण के लिए प्रस्थान कराएं। साधु संतों की विदाई उदासी के साथ नहीं मुस्कान के साथ करें। तभी चातुर्मास काल सफल हो सकता है। नीमच के लोग भाग्यशाली है जिनको 127 दिन तक साधु संतों का सानिध्य मिला। प्रत्येक व्यक्ति यही चाहता है कि जब उसके जीवन का अंत हो तो मेरे सामने एक संत हो। मेरे होठों पर अरिहंत का नाम हो , महावीर का पंथ हो मुक्ति की आस है पंडित मरण की आस है। महाभारत काल में दुर्याेधन के साथ भीष्म पितामह गुरु द्रोणाचार्य अश्वत्थामा करण सभी महान योद्धा थे ।पांच पांडवों के साथ श्री कृष्णा अकेले थे फिर भी वह विजयी हुए क्योंकि श्री कृष्ण सत्य की राह पर चलें थे। 18 दिन चले युद्ध में करोड़ लोग मृत्यु को प्राप्त हुए थे। पांचों पांडवों ने मौत की विभीषिका देखा तो ह्रदय गमगीन हो गया था तब श्री कृष्ण ने उन्हें कहा कि वे तीर्थ दर्शन कर अपने पापों का नाश करें। श्री कृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को एक तो तुम्बी दी और कहा कि वे जिस भी तीर्थ पर जाए तो इसको भी स्नान करा कर लाए ।पांडव गंगा यमुना सरस्वती गोदावरी कावेरी सभी नदियों में उस तुम्बी को भी स्नान कराकर पवित्र कर लाए थे दर्शन के बाद वापस लौटने पर वह तुम्बी श्रीकृष्ण को लौटाई तब श्री कृष्ण टुकड़े कर सभी पांडवों को खिलाइ और कहा कि इसे प्रसाद के रूप में ग्रहण करो प्रसाद ग्रहण किया तो तुम्बी कड़वी थी तब श्री कृष्ण ने कहा कि अपने मन के भीतर का कड़वापन खत्म करो तो तीर्थ दर्शन सार्थक  होगा। 

चातुर्मास के 4 महीनों से सभी को यह संकल्प लेना चाहिए कि वह जीवन में किसी की बुराई नहीं करेंगे तभी उनका  चातुर्मास में भाग लेना सफल हो सकता है। साधु संत चातुर्मास के बाद लोगों से वोट नोट सपोर्ट नहीं मांगते वे लोगों की बुराई रूपी खोट मांगते हैं। साध्वी प्रशमनिधि म. सा. ने कहा कि सूर्याेदय से सोया मनुष्य जाग जाता है ।अंधेरा मिट जाता है। और प्रकाश का उजाला हो जाता है इसी प्रकार साधु संतों के सानिध्य में अज्ञान रुपी अंधेरा हट जाता है और ज्ञान रूपी प्रकाश का उजाला होता है। यदि पत्थर रास्ते में रखा है तो उसकी ठोकर से व्यक्ति घायल हो जाता है । धोबी घाट पर लगा है तो कपड़े साफ हो जाते हैं। जयपुर के मूर्ति घर में रखा है तो उसकी सुंदर प्रतिमा बन जाती है और वही प्रतिमा मंदिर में स्थापित होती है तो अनेकों लोगों का कल्याण कर कर सकती है ।जीवन जीना कैसे हैं यह महत्वपूर्ण है। जीवन कितना जिया और किस प्रकार जिया यह महत्त्वपूर्ण होता है।पक्षी दाना लाकर अपने बच्चों को जानवर खाना लाकर अपने बच्चों को मनुष्य भोजन करा कर अपने बच्चों को पालन पोषण करते हैं।यदि मनुष्य कुछ विशेष धर्म तपस्या भक्ति नहीं करता है तो उसका जीवन पशु समान होता है। फिर पशु और मनुष्य में अंतर क्या है ।इस पर हमें चिंतन करना होगा। जिस प्रकार बैट्समैन की कौन सी बाल अंतिम होगी। वह कब आउट होगा। उसे पता नहीं होता है। ठीक उसी प्रकार मनुष्य का जीवन का कब अंत होगा उसे पता नहीं होता इसलिए मनुष्य को प्रत्येक क्षण पुण्य परमार्थ के पुरुषार्थ और धर्म तपस्या का कर्म करना चाहिए जीवन का कौन सा क्षण अंतिम चरणों का यह किसी को भी ज्ञात नहीं होता है इसलिए सदैव सत्य बोलना चाहिए और परोपकार के कार्य करते रहना चाहिए। महावीर स्वामी ने गौतम से कहा था कि एक पल का भी आलस्य मत कर तभी केवल ज्ञान को प्राप्त कर सकता है।मनुष्य के पास 24 घंटे में से 10 घंटे सोने में 12 घंटे व्यापार में और मात्र 2 या 3 घंटे उसके परिवार रिश्तेदार थे के लिए होता है लेकिन मनुष्य के स्वयं के लिए कोई समय नहीं है चिंतन का विषय है। हमें चिंतन करना होगा कि हमारी आत्मा कल्याण कैसे और कब होगा।समय के महत्व को समझना होगा 1 वर्ष का समय उस विद्यार्थी से पूछो जिसने वर्ष भर पढ़ाई की और कक्षा दसवीं में फेल हो गया 1 महीने का समय उस गर्भवती महिला से पूछो जिसने 9 माह तक अपने पेट में बच्चे को रखा और उसके बच्चे का जन्म हुआ 1 दिन का मूल्य का समय उस मजदूर से पूछो जिसने दिन भर मजदूरी करी और शाम को उसे मजदूरी नहीं मिली, 1 घंटे का समय सिकंदर ने कहा था कि दुनिया का कोई भी एक घंटा जीवन दान दे दे देगा लेकिन 1 घंटे का जीवन नहीं पाया था, 1 मिनट का समय उस व्यक्ति से पूछो वर्ल्ड ट्रेड टावर पर बम धमाके से 1 मिनट पहले वहां से निकलकर दूर चला गया था,1 सेकंड का समय उनसे पूछो जो धावक  दौड़ में 1 सेकंड पीछे रहने के कारण स्वर्ण पदक से वंचित रह जाता है। 

साध्वी सत्कार निधि श्री जी महाराज साहब ने कहा कि चातुर्मास प्रवेश उत्साह से करते हैं विदाई उदासी के साथ करते हैं चिंतन का विषय है, 4 माह तक नियम का पालन किया और अब नहीं करेंगे तो चातुर्मास करना व्यर्थ होगा ।जीवन पर्यंत संयम नियम का पालन करना चाहिए तभी जीवन सफल हो सकता है। और आत्म कल्याण हो सकता है। मंदिरों में रणकपुर, स्थापत्य कला में ताजमहल, बुद्धि में सद्बुद्धि, बच्चों के लिए तारक मेहता का उल्टा चश्मा, महिलाओं के लिए घर घर की कहानी, क्रिकेट में सचिन तेंदुलकर मनुष्य ने इन सब मनोरंजन पर तो ध्यान दिया लेकिन अपने आत्म रंजन पर ध्यान नहीं दिया । दुनिया में सबसे महत्वपूर्ण चीज अपनी आत्मा का कल्याण करना चाहिए। लेकिन मनुष्य का उस पर ध्यान नहीं है।मनुष्य के पास संसार के हर कार्य के लिए समय है लेकिन स्वयं की आत्मा के कल्याण के लिए समय नहीं है चिंतन का विषय है।यदि अपने आत्मा कल्याण करना है तो अपनी पेंसिल सतगुरु के हाथों में सौंप दें। 

कागज के टुकड़ों पर गवर्नर के हस्ताक्षर होने के बाद नोट मूल्यवान हो जाता है। इकावन वर्ष की उम्र के बाद वन गमन  और सन्यास के लिए आगे बढना चाहिए। बेटी ससुराल जाती  , बेटा विदेश पढ़ने जाए तब रोते हैं।यहां तो संत की विदाई पर हो रहे हैं। चिंतन का विषय है।यह सच्चाई है कि हमारे ह्रदय में परमात्मा बसे तभी आंसू आना चाहिएं  चातुर्मास खत्म होने के बाद होटल आलू पार्टी सारे मार्ग खोलना नहीं है ।इनसे बचना है। तभी चातुर्मास में भाग लेना सफल हो सकता है ।नहीं तो पाप मन में प्रवेश कर जाएगा और हम जहां से चले थे वहीं रह जाएंगे। हमें परमात्मा के सम्यक निर्वाहन से निर्वाण की ओर पहुंचना है नहीं तो हम वहीं के वहीं रह जाएंगे। धर्म सभा में वयोवृद्ध युवा हृदय सम्राट मनोहर सिंह लोढ़ा ने कहा कि साधु-संतों का मार्गदर्शन मिला सौभाग्य की बात है ।साधु संतों की वाणी से ही आत्म कल्याण का मार्ग मिलता है।

धर्म सभा में शांता देवी लोढ़ा आशा देवी लोढ़ा उर्मिला लोढ़ा ने गुरुवार का हम सब करेंगे स्वागत गीत प्रस्तुत किया। इस अवसर पर भीड़ भंजन पार्श्वनाथ मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष अनिल नागौरी ने भी धर्म सभा को संबोधित किया। इस अवसर पर विधायक दिलीप सिंह परिहार, नगर पालिका अध्यक्ष स्वाति चोपड़ा, भाजपा नेता संतोष चोपड़ा, अखेसिंह कोठारी,अग्रवाल समाज नीमच के अध्यक्ष सुरेश सिंहल , अशोक अरोरा, गोपाल गर्ग जी जी, आरुल अरोड़ा,मनीष कोठारी ,विमल मोगरा, बाबूलाल गौड, शोकिन जैन, पारसमल मुरडिया, प्रेम प्रकाश जैन ,हरीश दुआ ,उमराव सिंह राठौड़ ,प्रहलादराय गर्ग दडोली वाला, डॉ रमेश दक, सुशील पगारिया , साहित्यकार कवि प्रमोद रामावत प्रमोद,अखिल भारतीय जायसवाल महासभा के राष्ट्रीय सचिव अर्जुन सिंह जायसवाल, कृति संस्था के अध्यक्ष सत्येंद्र सिंह पतलासी किशोर जवेरिया प्रभात भट्ट आदि गणमान्य लोग उपस्थित थे। वीरेंद्र सिंह लोढ़ा ने स्वागत में गुरुवारया   दो नयनों की पलके सजाए हैं ना मैं ना आरती जानू मैं वंदना पूजा की रीत श्रमण वेश का में दीवाना मेरी पागल प्रीत है गीत प्रस्तुत किया ।धर्म सभा का संचालन वंदना राकेश आंचलिया ने किया। आभार सुरेंद्र लोढ़ा एवं नरेंद्र लोढ़ा ने व्यक्त किया।

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