चित्तौड़गढ़। शासकीय संत मानस मर्मज्ञ गो प्रेमी संत हरेकृष्ण राकेश पुरोहित ने कहा कि वर्तमान आर्थिक युग में बढ़ते विद्वेष और एकल परिवार के माहौल में घटते भ्रातृ भाव को मिटाने के लिए भरत के उत्कृष्ट भ्रातृत्व प्रेम से समाज के बन्धुत्व भाव को अंगीकार करना होगा। संत पुरोहित शनिवार रात्रि को मीठाराम जी का खेड़ा में मोहनलाल कमला बाई शर्मा चेरिटेबल ट्रस्ट की ओर से गोलोक वासी ओमप्रकाश शर्मा की स्मृति में आयोजित तीन दिवसीय प्रभु प्रेम भरत चरित्र कथा के अंतिम दिवस व्यासपीठ से सम्बोधित कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि मानस में यदि भरत चरित्र नहीं होता तो रामायण अधुरी रह जाती। उन्होंने कहा कि भरत राम से भी कहीं अधिक विशिष्ठतर रूप में मान्य है जिन्होंने राम वनवास के बाद माता कौशल्या, गुरु वशिष्ठ, प्रयागराज, महर्षि भारद्वाज एवं निषादराज द्वारा बार बार श्रीराम के आनन्दपूर्वक वन में रहने तथा किसी भी स्तर पर भरत का दोष नहीं बताने के बावजूद भरत ने पुनः अवध लौटना स्वीकार नहीं किया। उनका लगातार यही कहना रहा कि जब तक वे अपने आराध्य श्रीराम के चरणरज स्वीकार नहीं कर लेंगे तब तक अवध नहीं लौट पाएंगे।
प्रयागराज प्रसंग का उल्लेख करते हुए पुरोहित ने बताया कि जब भरत त्रिवेशी में स्नान कर वन गमन के लिए तैयार हुए तब स्वयं प्रयागराज ने प्रकट होकर भरत को निष्कलंक बताते हुए आग्रह किया लेकिन रामचरणानुरागी भरत तो उनकी बात भी अनसुनी कर अपने आराध्य के वशीभूत होकर रामसीय कहते हुए आगे बढ़ते गये। उन्होंने बताया कि श्यामलधरा श्रीराम की एवं गंगा की धवल धारा सीता मैया की प्रतिक है। किसी स्थान पर भरत के प्रेम सिन्धू का तृतीय बिन्दु प्रकट हुआ। जहां उन्होंने कहा कि जनम जनम में उनकी प्रीति राम के प्रति ही होगी। क्योंकि अवध से चित्रकूट जाने में भले ही राम की सहमति न हो लेकिन वे तो अपने आराध्य के दर्शन कर ही धन्य होंगे। इसी प्रकार जब महर्षि भारद्वाज भरत को संकल्प कराने लगे तो केवल भरत खण्डे शब्द का उच्चारण करने पर भरत राम के नाम विलाप करने लगे। दूसरी ओर त्रिलोकीनाथ राम भी भरत प्रेम से विव्हल होकर भरत को पुकारने लगे। यहां भरत ने कहा कि उन्हें धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष कुछ भी नहीं चाहिये, वे तो केवल श्रीराम के चरणों के सेवक ही बने रहेंगे। भरत हमेशा यही कहते रहे की बिना चरण पादुका मुनि वेश धारण कर राम, लखन, सिया वन में कितने कष्ट के साथ भ्रमण कर रहे होंगे, उनकी यह पीड़ा अतुलनीय है।
सुरमयी ठण्ड के बीच मध्य रात्रि तक चली कथा के दौरान जब राम भरत मिलन का प्रसंग आया तो इस आलौकिक दृश्य को संजो कर कई श्रोताओं के नयन भी सजल हो गये वहीं कथाव्यास भी भावुक होकर राम भरत मिलाप को सदृश्य प्रकट करने में लगे रहे। उन्होंने कहा कि भक्त और भगवान के मिलन का यह मनोहारी दृश्य जीवन को सच्चिदानन्द स्वरूप का दर्शन कराता है। इस दौरान गो प्रेमी पुरोहित ने जब गो सेवा के महत्व पर प्रकाश डाला तो तीन दिवसीय कथा में लगभग 51 हजार रुपये की राशि संग्रहित हुई जिसे गो सेवार्थ अर्पित किया जाएगा। कथा के दौरान महामण्डलेश्वर चेतनदास महाराज ने श्रीराम नाम का संकीर्तन करवाया वहीं उनके शिष्य अनुज दास ने राम भरत की महत्ता पर विस्तार से प्रकाश डाला। प्रारम्भ में आयोजक परिवार एवं अतिथियों द्वारा व्यासपीठ का पूजन करने के साथ ही कथा विराम पर महाआरती की गई।