पाप - पुण्य के ज़्यादा फेर में, मै नहीं पड़ता और न ही मे धार्मिक व्यक्ति हूँ, लेकिन आज बहन अंजलि वोहरा की दीक्षा को जब देखा तो रोये खड़े हो गए क्योकि लम्हा ही ऐसा था एक असंभव बात संभव होते देख रहा था इस लम्हे के दौरान मे ख्याल मे चला गया और सोचने लगा यदि किसी को चार - पांच दिन के लिए घर से बाहर भेज दे तो वह जल्दी से जल्दी परिवार मे लौटने की सोचेगा और उलटे पाँव चलने लगेगा लेकिन यहाँ तो मरते दम तक के लिए परिवार, रिश्ते, नाते सबकुछ छोड़ने की बात है जो राह पकड़ ली वह अब निर्वाण होने तक की है
वैसे यदि हम भारतीय परम्पराओ, धर्मो को देखे तो आमतौर पर जो लोग सत्य की खोज मे निकले या फिर तप के रास्ते को चुना तो उनमे अधिकाँश पुरुष ही मिलेंगे और एक बात और देखने मे आती है की महिलाये चूँकि वातसल्य से भरी होती है तो उनका परिवार से मोह पुरुषो से कही अधिक होता है वे ज़्यादा पारिवारिक और सांसारिक होती है ऐसे मे बहन का कठोर तप के रास्ते को चुनना बहुत बड़ी हिम्मत का काम है और आज नीमच मे हुईं दीक्षा मे बहन अंजलि वोहरा ने सांसारिकता का परित्याग कर दिया
वैसे जैन परम्पराओ मे बहने तपस्या के मार्ग मे हज़ारो की संख्या मे शामिल होती रही है पूरे देश के सकल जैन समाज के हर पंथ मे साध्विया है जो ऐसे ही दीक्षा का मार्ग चुनकर आयी है वैसे मैने अब तक जो जाना तो पाया तपस्या का सबसे कठिनतम मार्ग जैन समाज ने ही सुझाया है आप केवल कल्पना कीजिये की आपने एक दिन के लिए अपने घर - परिवार को छोड़ना है, केवल इस ख्याल से ही आपको नींद नहीं आएगी लेकिन जैनिज़्म मे इस तरह सबकुछ छोड़कर निकल जाना एक चमत्कार ही लगता है और फिर यदि दिगम्बर पंथ की बात करे तो उसमे वस्त्र तक त्याग दिए जाते है ये कमाल की तपस्या है लेश मात्र भी मोह नहीं होना केवल आत्मा के खोल के रूप मे शरीर का होना बाकी कुछ भी नहीं
दीक्षा के बाद मैने देखा साध्वी होकर बहन अंजलि ज़्यादा खुश नज़र आ रही थी गज़ब का माहौल था, लाखो लोगो की भीड़ मे किसी ने इस सांसारिक मोह माया को एक पल मे ठुकरा दिया, दुनिया के तमाम सुख उस दीक्षार्थी बहन के सामने बेहद बौने और मामूली लग रहे थे, ऐसा लग रहा था वो इन सबके सामने एक विराट स्वरूप मे है और कह रही है मैरा मार्ग तप से होकर जाता है, इसलिए मै तुम सबको और तमाम सांसारिक बंधनो को त्यागती हूँ, अब केवल मेरी आत्मा है और कुछ भी नहीं, जय जिनेन्द्र !