नीमच। श्री दिगम्बर जैन समाज आज शाम को प्राकृत जैन विद्या पाठशाला का आयोजन करेगा। श्री 1008 भगवान महावीर स्वामी का 2622 वां जन्म कल्याणक महोत्सव के तहत आयोजित होने वाला यह कार्यक्रम शाम 7.30 बजे दिगम्बर जैन मांगलिक भवन में संपन्न होगा।
दिगम्बर जैन समाज अध्यक्ष विजय विनायका (जैन ब्रोकर्स), सचिव मुकेश विनायका, संचालिका निधि वैभव जैन (गुना वाले), सहायिका प्रियंका विशाल विनायका (जैन ब्रोकर्स) व मीडिया प्रभारी शैलेंद्र सेठी ने बताया कि प्राकृत जैन विद्या पाठशाला में शाम 7.30 बजे से मंगलाचरण- प्राकृत भाषा में (गायन), दीप प्रज्जवलन- समाज अध्यक्ष, प्राकृत भाषा एवं पाठशाला की जानकारी- समाज सचिव द्वारा, नवदेवता स्तुति- प्राकृत भाषा में (नृत्य), दो श्राविकाएं मंदिर जाते- प्राकृत भाषा में संवाद एवं दर्शन स्तुति समय एवं दर्शन करते समय, प्राकृत भाषा हमारी दादी मां- नाटिका (प्राकृत भाषा का महत्व) सहित कई कार्यक्रम होंगे।
मीडिया प्रभारी शैलेंद्र सेठी ने बताया कि प्राकृत भाषा - जो कि प्रकृति से निष्पन्न है जिसका अर्थ है नैसर्गिक या स्वाभाविक प्राकृत भाषा किसी सम्प्रदाय विशेष की भाषा नहीं अपितु जन-जन की भाषा है। जैन समाज का महामंत्रनमोकार भी प्राकृत भाषा में लिपीबद्ध है। हमारे महान आचार्याे द्वारा रचित ग्रन्थ भी प्राकृत भाषा में है - जैसे घट्खण्डागम, कषायापाहुड़, मूलाचार सार, क्षपणासार, द्रव्यसंग्रह आदि अनेकों सैकड़ो प्रंथ है जो हम प्राकूल भाषा नहीं जानने के जभाव में इनग्रंथों को पढ़ने असमर्थ हैं। जिनवाणी के बारह अंग भी प्राकृत भाषा में ही लिखे गए हैं। भगवान महावीर स्वामी ने भी अपने उपदेश प्राकृत भाषा में ही दिए थे। लेकिन आज हम अपनी भाषा को भूला चूके हैं ।
भारत के प्रथम राष्टपति डॉ.राजेन्द्रप्रसाद ने कहा था प्राकृत भाषा के इतिहास के बिना भारत के इतिहास का ज्ञान अघूरा है। आज भी लंदन की एसओएएस युनिर्वसिटी में प्राकृत भाषा का अध्ययन कराया जाता है। लेकिन हम भारतीयों ने इस भाषा को बिलकुल भूला दिया था। लेकिन आज परम् पूज्य मुनि 08 प्रणम्यसागरजी महाराज का हमारे उपर उपकार है जो उन्होंने इस भाषा को पुर्नजीवित करने के लिए पाइय सिक््खा के 4 भागों के पुस्तक की रचना की। जिससे की इन पुस्तकों के माध्यम से प्राकृत भाषा को सरल रुप में सीखा जा सकता है। नीमच दिगम्बर जैन समाज ने पहल करते हुए अपनेरू यहाँ प्राकृत जैन विद्या पाठशाला का संचालन करना शुरु कर दिया है जिससे की नीमच दिगम्बर जैन समाज के विभिन्न स्त्री, पुरुष एवं बच्चे प्राकृत भाषा सीख-लिख, बोल और पढ़ सके इस तरह इस भाषा को भविष्य में सहेज कर रखने और संरक्षण करने में सहायता प्राप्त होगी। परम् पूज्य मुनि 08 प्रणम्यसागरजी महाराज कहते हैं। अगर हिन्दी भाषा हमारी माँ है तो प्राकृत भाषा हमारी दादी माँ है।