नीमच। विधानसभा चुनाव का आगाज हो चुका हैं और पल-पल में प्रदेश में नए राजनीतिक समीकरण भी बन रहे हैं। विरोध के स्वर दोनों ही पार्टियों से उठ रहे हैं। कांग्रेस ने जहां आज डेमेज कंट्रोल करते हुए प्रदेश की चार विधानसभा में प्रत्याशियों में बदलाव कर दिया हैं। वहीं भाजपा में उठ रहे बगावती सुर को सही करने के लिए अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया हैं। नीमच जिले की तीनों विधानसभा सीटों पर भी भाजपा से बड़े नेता विरोध में उतर आए हैं। यहां उम्मीदवारों को रिपीट करने के बाद दिग्गज नेताओं ने बगावत का बिगुल फूंक दिया है।
नीमच जिले की तीनों विधानसभा सीट पर भी भाजपा से बड़े नेता विरोध में उतर गए हैं। जिले में तीनों सीटों पर उम्मीदवार को रिपीट किया गया हैं। जिसके बाद उम्मीदवारी कर रहे अन्य नेताओं ने बगावत का ऐलान कर दिया हैं। वहीं सूत्रों के अनुसार पार्टी की तरफ से अभी तक इन बगावत करने वाले नेताओं से कोई चर्चा नहीं हुई हैं।
मनासा विधानसभा में विधायक माधव मारु को प्रत्याशी बनाए जाने के बाद पूर्व मंत्री कैलाश चावला और पूर्व विधायक विजेंद्र सिंह मालाहेड़ा ने मारु के खिलाफ मोर्चा खोल दिया हैं। कल मनासा विधानसभा के कुकड़ेश्वर में विशाल कार्यकर्ता सम्मेलन का आयोजन भी रखा गया हैं। विज्जु बना या चावला में से कोई भी कल चुनाव लड़ने की घोषणा कर सकता हैं। साथ ही सूत्रों के अनुसार सम्मेलन के बाद कार्यकर्ताओं के काफिले के साथ नामांकन भी भरा जा सकता हैं। अगर भाजपा से यहां बागी उम्मीदवार खड़ा हो जाता हैं तो मारु के लिए चिंता बढ़ जाएगी।
नीमच सीट पर भी भाजपा प्रत्याशी विधायक दिलीप सिंह परिहार की मुश्किलें बढ़ गई हैं। यहां भी परिहार का विरोध हो रहा हैं। जैसा कि वॉइस ऑफ एमपी ने कल खबर में बताया था कि इस सीट से पाटीदार समाज की नाराजगी देखी जा रही हैं। आज भाजपा नेता और सांसद प्रतिनिधि वीरेंद्र पाटीदार ने दिलीप बापू को लेकर जमकर हमला बोला हैं। साथ ही पाटीदार ने चुनाव लड़ने का भी ऐलान कर दिया हैं। पाटीदार के साथ किसान नेता नवलगिरि गोस्वामी और पंडित शैलेश जोशी भी नामांकन फॉर्म ले आए हैं।
वहीं बात करें जावद विधानसभा की तो यहां भी टिकिट नहीं मिलने पर भाजपा नेता पूरणमल अहीर ने बगावती सुर अपना लिए हैं। पूरण अहीर ने तो नामांकन भी दाखिल कर दिया हैं। यहां से भाजपा से प्रत्याशी मंत्री ओमप्रकाश सखलेचा हैं।
नीमच जिले को संघ परिवार की नर्सरी भी कहा जाता हैं और भाजपा में हमेशा संगठन को ज्यादा तवज्जों दी जाती हैं। ऐसे में संगठन के फैसले के विरोध में नेताओं और कार्यकर्ताओं का खुलेआम बयान देना साथ ही चुनाव लड़ना भाजपा के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं। अब देखना हैं जिले में उम्मीदवारों के खिलाफ पनप रहे आक्रोश और विरोध को भाजपा कैसे हैंडल करती हैं। अगर डेमेज कण्ट्रोल नहीं किया गया तो बड़ा उलटफेर हो सकता हैं।