चित्तौड़गढ़। बूंदी रोड स्थित रामद्वारा में आयोजित राम कथा प्रसंग में जानकी सीता की विदाई का प्रसंग सुनाते हुए संत दिग्विजय राम ने कहा कि एक माँ ही जानती है की बेटी की विदाई का दुख किया होता है जितनी चिंता बेटी मां बाप की करती है उतनी कोई नहीं करता है। हमेशा कन्या को परायी संपत्ति मानकर विदा किया जाता है तो माता-पिता का हृदय व्यथित हो जाता है स उस क्षण की कल्पना नहीं की जा सकती जब सीता माता को माँ सुनयना ने विदा किया होगा वह क्षण कितना भावुक होगा स मां सुनयना सीता मां को सीख देती है कि ससुराल में सास ससुर एवं गुरु की सेवा करना व पति की आज्ञा का पालन करना यही स्त्री का धर्म है स अगर जीवन में सत्संग व भजन नहीं किया तो यह जीवन यूं ही समाप्त हो जाएगा अतः समय पर भजन व सत्संग कर लेना चाहिए स जब प्रभु राम की बारात जनकपुर से अयोध्या आई तो दशरथ जी के मन में विचार आया कि अब राम को राजा बना देना चाहिए अपनी यह इच्छा गुरु विशिष्ट के समक्ष प्रकट की तो गुरु जी ने कहा की आज शुभकामना में देरी क्यूँ कल सुबह राम के राज्याभिषेक का मुहूर्त हैं। लेकिन यह बात देवताओं को पसंद नहीं आई क्योंकि देवता अपनी परेशानी को प्रभु श्री राम के माध्यम से समाप्त करना चाहते थे और देवताओं ने देवी सरस्वती से प्रार्थना की सरस्वती जी ने उनकी प्रार्थना स्वीकार कर मथुरा दासी के माध्यम से अपना काम किया स हर जीव अपने कर्म के अनुसार सुख-दुख भोगता है दुष्ट लोग पराए का सुख नहीं देख पाते हैं। इस संसार में विचित्रता यह है कि व्यक्ति अपने दुख से दुखी नहीं है उसके दुख का मुख्य कारण पड़ोसी का सुख है। अर्थात पड़ोसी के सुख से वह दुखी है पड़ोसी को परेशान करने के लिए स्वयं परेशान होता है स केकेइ की दासी मथरा ने अपने कुवचनों से केकेई की बुद्धि फेर दी कैकई ने राजा दशरथ से अपने दो वचन मांग कर भरत को राज्य व राम को वनवास देना मांगा स व्यक्ति की जैसी संगति होगी वैसा ही विचार आएगा और कुसंगत से जीवन का पतन निश्चित है। व्यक्ति की संगति से पता चलता है कि उसका आचरण कैसा है स स्वामी रामचरण जी महाराज ने अपनी अनुभव वाणी में कहा है -सुविचार जीवन जीने की कला है स जिस प्रकार इत्र की दुकान पर जाने से खुशबू अपने आप लग जाती है उसी प्रकार लोहार के यहां बैठने से आग के पतंगे से कपड़ों पर छेद हो जाएंगे अर्थात जैसा संग वैसा ही जीवन का रंग होता है संसार में नुगरा व्यक्ति न भक्ति करता है और न हीं करने देता है अतः नुगरों की संगत नहीं करना चाहिए हमेशा संतों का संग करो जिससे लोक व परलोक दोनों सुधर जाएंगे हैं।
आज सांवरिया धाम मुंगाना से संत अनूप दास व रामपाल महाराज एव सागर दास महाराज का माला एवं चादर ओढ़ा कर स्वागत किया गया। कथा प्रसंग में जनकपुर से राम की बारात विदाई, अयोध्या में श्री राम का स्वागत, एवं केकेई द्वारा दशरथ से अपने दो वचन मांगना व राम का वनवास के लिए प्रस्थान करना आदि प्रसंग सुनाए। कथा संत रमता राम जी के पावन सानिध्य में श्रवण कराई जा रही है। कथा के कथा के दौरान संत रमता राम जी एवं दिग्विजय राम जी ने पधारे हुए संतों का माल्यार्पण एवं शाल ओढ़ाकर वरिष्ठ नागरिक मंच चित्तौडग़ढ़ की ओर से स्वागत अभिनंदन किया।