नीमच नगर पालिका परिषद् हाल की बेरिकेटिंग और उसके बाद कांग्रेस पार्षदों की जद्दोजहद देखकर मुझे 20 साल पहले की एक घटना याद आ गयी यह घटना उस समय की है जब विधानसभा चुनाव में नीमच से स्व बालकवि बैरागी और स्व खुमान सिंह शिवाजी आमने - सामने थे घटना स्थल जिला कांग्रेस दफ्तर गांधी भवन था चुनाव प्रचार अभियान अपने पूरे शबाब पर था मै शाम के समय गांधी भवन पर खड़ा था तभी एक अल्पसंख्यक कार्यकर्ता वहाँ आया और गांधी भवन पर बैठे चुनाव संचालक से कहने लगा भाईसाहब वो लोग मुझे प्रचार वाली जीप मे नहीं बिठा रहे है
उस अल्पसंख्यक कार्यकर्ता की शिकायत पर क्या हुआ ये तो मैने नहीं जाना लेकिन इस घटना ने मुझे एक बहुत बड़ा सबक दे दिया वो यह की आज़ादी के 50 साल बाद अभी तो अल्पसंख्यक कांग्रेस से प्रचार वाली जीप मे बैठने की गुहार मे लगे है, ये अपने हक़ की बात कब कर पाएंगे
ठीक इसी तरह बीजेपी अध्यक्ष वाली नपा मे परिषद् हाल मे बेरिकेटिंग के बाद कांग्रेस पार्षदों की जद्दोजहद तो आसंदी तक पहुँचने की ही थी इस घटना से बीजेपी ने उनकी साइज़ बता दी और यह मैसेज भी दे दिया की अभी दिल्ली दूर है अब ये पार्षद कब तो आसंदी तक पहुंचेंगे और कब नीमच की जनता के हक़ की बात करेंगे
बदलते ज़माने की साथ राजनीति के तरीके भी बदल गए, भाजपा बहुमत वाली नपा मे बेरिकेटिंग का ऐसा ड्रामा रचा की तमाम विपक्षी पार्षद उसी बेरिकेटिंग मे उलझ कर रह गए और उसी पर कांग्रेस ने बयान बाजी शुरू कर दी इस बेरिकेटिंग ने जनहित के तमाम मुद्दों को मामूली कर दिया आम जनता सोच रही है की कब तो ये कांग्रेस पार्षद बेरिकेटिंग पार करेंगे और कब जनता के मुद्दों पर बात होगी
कितनी अजीब बात है नगर निगम की हैसियत रखने वाली नपा नीमच के दूसरे ही परिषद् सम्मेलन को मात्र 10 मिनिट मे निपटा दिया गया यदि परिषद् के सम्मेलन 10 मिनिट चलेंगे तो फिर परिषद् चुनने के मायने क्या, फिर क्यों पार्षदों के चुनाव की इतनी कथा कहानी होती है कायदा यह कहता है की नगर सरकार का जब सत्र होता है तो पूरे शहर के पार्षद वहाँ अध्यक्ष से संवाद कायम करते है और अपनी अपनी समस्याएं रखते है जिससे वो मुद्दे निकलकर सामने आ सके जिन पर शहर की सरकार को काम करना है इसके अलावा जिन मुद्दों पर निर्णय लिया जाना है उन पर सभी 40 पार्षदों की राय ली जा सके ताकि उन प्रस्तावों मे कोई कमी पेशी है तो उसे दूर किया जा सके
कितने आश्चर्य की बात है की 10 मिनिट मे 55 प्रस्ताव कैसे पास हो सकते है क्या प्रस्ताव पढ़ कर सुनाये भी नहीं गए जब यह सब काम पार्षदों को करना ही नहीं है तो परिषद् का सम्मेलन बेमानी है इतनी कवायद किस लिए की जाए फिर तो ये सब ड्रामा ही कहा जाएगा इस पूरे मामले मे भाजपा पार्षदों को भी विचार करना चाहिए की परिषद् सम्मलेन मे कांग्रेस - भाजपा नहीं होता वहाँ पार्षद संवैधानिक दर्जा प्राप्त होता है और उसका दाइत्व है की परिषद् मे जनहित के मुद्दों को उठाये यदि भाजपा पार्षद यह सब करते है तो उन्हें सोचना चाहिए की वे जनता के वोटो से चुने गए है और उन्हें उसकी जवाबदारी निभानी है न की 10 मिनिट मे पास - पास कहकर बाहर आना है