वॉइस ऑफ़ एमपी के नए कंसेप्ट शाम के ई पेपर की खबरों पर हमें सैंकड़ो रिएक्शन आम लोगो ने भिजवाए हमारी खबरों पर जनता ने जमकर प्रतिकिर्या दी डिजिटल मीडिया का ये सबसे बड़ा फायदा है की आपने जो लिखा वो आम आदमी के कितने गले उतरा या नहीं उसका बेहद पारदर्शी आकलन हो जाता है डिजिटल मीडिया में पत्रकार को जीतनी आज़ादी है लिखने की उतनी आज़ादी पाठक को भी है की वो आपके लिखे पर अपनी डिग्री लगा सके वॉइस ऑफ़ एमपी के नए कंसेप्ट को उम्मीद से कही अधिक सरहाना मिल रही है इसके लिए पाठको का दिल की गहराइयों से आभार
पिछली खबरों मे हमने नीमच शहर मे मुंह बाये फैले मुद्दों पर बात की आखिर इतनी समस्याएं इतने साल से है और आज तक हल नहीं निकला इसके लिए बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही राजनैतिक दलों की जिम्मेदारी तय की जा सकती है क्योकि ये दोनों पार्टिया ही लम्बे समय से नगर और प्रदेश सरकार मे राज करती रही लेकिन इसके लिए इन दोनों दलों के अलावा आम आदमी भी उतना ही जिम्मेदार है
आम आदमी अपने वोटो की ताकत से सरकार बनाता है और बिगाड़ता है वही है जो इस व्यवस्था के केंद्र मे है लेकिन ये शक्तिशाली आम आदमी सो गया है यदि हम देखे तो किसी भी समस्या के लिए ये आम आदमी निकलकर सामने नहीं आता उलटा डरता है अपने सही काम को करवाने के लिए भी वह वो रास्ता चुनता है जो करप्शन से होकर जाता है क्योकि वो अपने हक़ के लिए लड़ना भूल गया है या यूँ कहा जाए की इस शूरवीर मे लड़ने का माद्दा ही खत्म हो गया
ये आम आदमी सोचता है कोई सूरमा आएगा और उसकी लड़ाई लड़ेगा और उसे इन्साफ दिलाएगा वही एक और ख़ास बात बेहद डरपोक आम आदमी सोचता है भगत सिंह अपने घर मे पैदा नहीं हो वो पड़ोस के घर मे पैदा हो अब आप बँगला बगीचा समस्या हो या फिर कृषि उपज मंडी मे किसानो के साथ न इंसाफ़ी पिछले बीस सालो मे इस पीड़ित आम आदमी ने एक आंदोलन तक नहीं किया और तो और यह ज्ञापन या मांग पत्र देने से भी डरता है, जैसे उसकी फोटो खिंच जायेगी
आप विचार कीजिये समूची व्यवस्था के केंद्र मे आम आदमी बैठा है, वही सरकार बनाता है और उसके चुने हुए नेता जन सेवक कहलाते है और जो प्रशासन है वे सरकार के नौकर लेकिन ये लाचार और बेबस आम आदमी अपने छोटे छोटे कामो के लिए जनसेवक और सरकार के नौकर के सामने हाथ बांधे खड़ा रहता है और मिमयाता है, आप सोचिये नगर पालिका हो या फिर कृषि मंडी या फिर कोई और विभाग क्या ये जनसेवक मूँछ पर ताव देकर कह सकते है की यहाँ ज़ीरो टॉलरेंस पर काम हो रहा है
नीमच मे पोस्ता दाना मंडी महीनो से बंद पड़ी है किसान अपना पोस्तादाना कहा बेचे लेकिन पोस्ता कारोबारियों की मुश्किल भी कुछ कम नहीं पांच साल पहले जब केंद्र की मोदी सरकार ने फैसला दिया की डोडा चूरा अब खरीदा और बेचा नहीं जाएगा इसे जलाया जाएगा तब से पोस्तादाना छनाई मे निकलने वाला धोला पाली अवैध हो गया और तब से ही व्यापारी राज्य सरकार के सामने हाथ जोड़े खड़े है की मालिक हम क्या करे ये जो धोला पाली निकल रहा है इसे जलाये या फिर सरकार को जमा कराये लेकिन इन पांच सालो मे इस मामले मे सरकार मे पत्ता तक नहीं हिला ऐसे मे व्यापारी पोस्ता दाना कैसे छाने यदि वे ये काम करते है तो उन्हें एनडीपीएस का डर सताता है लेकिन आज तक सरकार और उसमे बैठे नेताओ ने कुछ नहीं किया यदि क़ानून बन जाता और उसके बाद कोई कारोबारी धोला पाली को बेचते दिखता तो एनडीपीएस लगना लाजमी था अब जब मंडी बंद है तो है ये आम आदमी भी मूक दर्शक बना टुकुर टुकुर देख रहा है
ये कोई एक या दो मामले नहीं ऐसे अनेको मुद्दे है जिसपर कोई सुनने वाला नहीं जिला अस्पताल को लो तो वहा ईलाज नहीं और न डॉक्टर है पर ये आम आदमी सब सह रहा है और इसके सहने की शक्ति भी असीमित है इस आदमी की इस दयनीय स्थिति को विपक्ष मे बैठी कांग्रेस भी देख रही है लेकिन उसके नेता आंदोलन तो दूर सत्तासीन बीजेपी के खिलाफ बयान देने तक से घबराते है और पार्टी स्तर पर जो आंदोलन होते है वो केवल रस्म अदाएगी से अधिक कुछ भी नहीं अब ऐसे मे ये आम आदमी कहा जाए और क्या करे