चित्तौड़गढ़। शिक्षा का मूल उद्देश्य हैं चरित्र का निर्माण करना, असत्य से सत्य की ओर ले जाना, बंधन से मुक्ति की ओर जाना। लेकिन आज की शिक्षा भौतिकता की ओर ले जा रही है। भौतिक शिक्षा से भौतिकता की प्राप्ति होती है और नैतिक शिक्षा से चरित्र बनता है। इसलिए वर्तमान के समय प्रमाण भौतिक शिक्षा के साथ-साथ बच्चों को नैतिक शिक्षा की भी आवश्यकता है।
उक्त उदगार माउंट आबू से प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय के ब्रह्माकुमार भगवान भाई ने कहे वे आज शुक्रवार को टैगोर पब्लिक स्कूल और शिखर शिक्षा केंद्र में छात्र-छात्राएं और शिक्षकों को जीवन में नैतिक शिक्षा का महत्व विषय पर बोल रहे थे।
भगवान भाई ने कहा कि विद्यार्थियों को मूल्यांकन, आचरण, अनुकरण, लेखन, व्यवहारिक ज्ञान इत्यादि पर जोर देना होगा। वर्तमान के समाज में मूल्यों की कमी हर समस्या का मूल कारण हैं। उन्होंने कहा कि जब तक हमारे व्यवहारिक जीवन में परोपकार, सेवाभाव, त्याग, उदारता, पवित्रता, सहनशीलता, नम्रता, धैर्यता, सत्यता, ईमानदारी आदि सद्गुण नहीं आते तब तक हमारी शिक्षा अधूरी हैं। शिक्षा एक बीज है जीवन एक वृक्ष है। जब तक हमारे जीवन रूपी वृक्ष में गुण रूपी फल नहीं आते तब तक हमारी शिक्षा अधूरी है। समाज अमूर्त होता हैं और प्रेम, सद्भावना, भातृत्व, नैतिकता एवं मानवीय सद्गुणों से संचालित होता है।
उन्होंने कहा कि भौतिक शिक्षा से भौतिकता का विकास होगा और नैतिक शिक्षा से सर्वागिंण विकास होगा। नैतिक शिक्षा से ही हम अपने व्यक्तित्व का निर्माण करते हैं जो आगे चलकर कठिन परिस्थितियों का सामना करने का आत्मविवेक व आत्मबल प्रदान करता है। उन्होंने कहा कि नैतिकता के अंग हैं। सच बोलना, चोरी न करना, अहिंसा, दूसरों के प्रति उदारता, शिष्टता, विनम्रता, सुशीलता आदि। नैतिक शिक्षा के अभाव के कारण ही आज जगत में अनुशासनहीनता, अपराध ,नशा-व्यसन, क्रोध, झगड़े आपसी मन मुटाव बढ़ता जा रहा है। नैतिक शिक्षा ही मानव को ‘मानव’ बनाती है क्योंकि नैतिक गुणों के बल पर ही मनुष्य वंदनीय बनता है। सारी दुनिया में नैतिकता अर्थात सच्चरित्रता के बल पर ही धन-दौलत, सुख और वैभव की नींव खड़ी है।
प्रिन्सिपल व्ही के राजावत ने उद्बोधन देते हुए कहा कि नैतिक शिक्षा से ही छात्र-छात्राओं में सशक्तिकरण आ सकता है। उन्होंने आगे बताया कि नैतिकता के बिना जीवन अंधकार में हैं। नैतिक मूल्यों की कमी के कारण अज्ञानता, सामाजिक, कुरीतियां व्यसन, नशा, व्यभिचार आदि के कारण समाज पतन की ओर जाता है।
स्थानीय ब्रह्माकुमारी सेवाकेंद्र की राजयोग शिक्षिका बीके आशा बहन ने कहा कि जब तक जीवन में आध्यात्मिकता नहीं है तब तक जीवन में नैतिकता नहीं आती है। आध्यात्मिकता की परिभाषा बताते हुए उन्होंने कहा कि स्वयं को जानना पिता परमात्मा को जानना और उसको याद करना ही आध्यात्मिकता है, जिसको राजयोग कहते हैं।
राजयोग को अपनी दिनचर्या का अंग बनाने की अपील भी की।
कार्यक्रम की शुरुवात स्वागत से की गयी और अंत में बी के भगवान भाई ने मन की एकाग्रता बढाने हेतु राजयोग मेंडिटेशन भी कराया। प्रिन्सिपल विपिन दाधीच ने ब्रह्माकुमारी के इस कार्यक्रम के लिए आभार व्यक्त किया और भविष्य में ऐसे कार्यक्रम हेतु निमन्त्रण भी दिया। कुछ बच्चो ने आज के इस नैतिक शिक्षा के कार्यक्रम के लाभ भी सूनाये। इस कार्यक्रम में बीके अनीता बहन , रिटायर लेखाधिकारी प्रल्हाद हेडा, बीके निर्मला माता बीके रितु माता बौर सभी शिक्षक स्टाफ उपस्थित था।