चित्तोड़गढ़ । सकारात्मक चिन्तन से हमारा मनोबल को मजबूत बन सकता हैं। सकारात्मक चिन्तन द्वारा ही हम क्रोध मुक्त और तनाव मुक्त जीवन जी सकते हैं। सकारात्मक चिंतन से सहनशीलता आती जिससे कई समस्याओं का समाधान हो जाता है।
उक्त उदगार प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय माउंट आबू से आये हुए बी के भगवान भाई ने कहे। वे आज स्थानीय ब्रह्माकुमारीज के राजयोग सेवा केंद्र पर एकत्रित ईश्वर प्रेमी भाई बहनों के लिए क्रोध मुक्त जीवन हेतु सकारात्मक चिंतन विषय पर बोल रहे थे।
भगवान भाई ने कहा कि सकारात्मक चिंतन से ही हम सहनशील बन क्रोध मुक्त बन सकते है। मन में चलने वाले नकारात्मक विचार, शंका, कुशंका, ईर्ष्या, घृणा, नफरत अभिमान के कारण ही नकारात्मक विचारो की उत्पति होती है। उन्होंने कहा की नकारात्मक विचारो से ही तनाव पैदा होता और नकारात्मक विचार ही तनाव वा अपराधो के मूल कारण बन जाते है। नकारात्मक विचारो से क्रोध उत्पन्न होता जहा क्रोध है वहां बरकत नही हो सकती है। इसलिए वर्तमान में क्रोध मुक्त बनाना जरुरी है।
उन्होंने राजयोग की महत्ता बताई और कहा कि राजयोग के द्वारा ही हम अपने संस्कारों को सतो प्रदान बना सकते हैं। इंद्रियों पर काबू कर सकते हैं। क्रोध मुक्त और तनाव मुक्त रहने के लिए हमें रोजाना ईश्वर का चिंतन, गुणगान करना चाहिए। सकारात्मक चिन्तन से हम जीवन की विपरीत एवं व्यस्त परिस्थितियों में संयम बनाए रखने की कला है। भगवान भाई जी ने कहा कि आध्यात्मिक ज्ञान को सकारात्मक विचारों का स्रोत बताते हुए कहा कि वर्तमान में हमे आध्यात्मिकता को जानने की जरुरी है आध्यात्मिकता की परिभाषा बताते हुए उन्होंने कहा स्वयं को यर्थात जानना, पिता परमात्मा को जानना, अपने जीवन का असली उद्देश्य को और कर्तव्य को जानना ही आध्यात्मिकता है। आध्यात्मिक ज्ञान द्वारा सकारात्मक विचार मिलते है जिससे हम अपने आत्मबल से अपना मनोबल बढ़ा सकते है। उन्होंने कहा कि सत्संग से प्राप्त ज्ञान ही हमारी असली कमाई है। इसे न तो चोर चुरा सकता है और न आग जला सकती है। ऐसी कमाई के लिए हमें समय निकालना चाहिए। सत्संग के द्वारा ही हम अच्छे संस्कार प्राप्त करते हैं और अपना व्यवहार सुधार पाते।
स्थानीय ब्रह्माकुमारी सेवाकेंद्र की संचालिका बी के आशा बहन ने राजयोग की विधि बताते हुआ कहा कि स्वम को आत्मा निश्चय कर चाँद, सूर्य, तारांगण से पार रहने वाले परमशक्ति परमात्मा को याद करना, मन-बुद्धि द्वारा उसे देखना, उनके गुणों का गुणगान करना ही राजयोग हैं । राजयोग के द्वारा हम परमात्मा के मिलन का अनुभव कर सकता हैं । उन्होनें कहा की राजयोग के अभ्यास द्वारा ही हम काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, ईर्ष्या, घृणा, नफरत आदि मनोविकारों पर जीत प्राप्त कर जीवन को अनेक सद्गुणों से ओतपोत व भरपूर कर सकते हैं।