विधायक दिलीप बापू की बंगला - बगीचा पर यलगार के बाद आज मनासा विधायक अनिरुद्ध माधव मारु ने भी विधानसभा में जमकर हुंकार भरी। उनकी इस गरज को जानकार विधानसभा चुनाव से जोड़कर देख रहे हैं और कह रहे हैं कि माधव भैया को हाईकमान ने हरी झंडी दे दी लगती है, जिस तरह से दिलीप बापू ने अपने विरोधियों के खिलाफ मोर्चा संभाला है और जनहित के मुद्दों पर गर्जना शुरू किया है ठीक उसी प्रकार माधव भैया ने भी मैदान संभाल लिया है।
जमकर गरजे माधव-
आज विधान सभा में विधायक मारु गजब के गरजे और कहा कि मेरे क्षेत्र में एशिया की सबसे बड़ी झील जिसके बनने में हमने हमारी 34 हज़ार हेक्टेयर सिंचित जमीन खोई, 150 गाँव विस्थापित हुए और सबकुछ छोड़कर लोगों को जाना पड़ा, लेकिन तत्कालीन सरकारों ने इतना बड़ा छल किया कि वहां का पानी राजस्थान के चित्तौड़, भीलवाड़ा, जयपुर और एमपी के भिंड-मुरैना तक को मिला, लेकिन मेरे क्षेत्र को आज तक एक बून्द पानी नहीं मिला। उन्होंने यह भी कहा कि हर साल डेम में 550 एमसीएम पानी आता है, जिसमें 450 एमसीएम पानी डेम में बचा रहता है फिर भी हमें एक बून्द पानी नहीं दिया जा रहा।
क्या मिल गयी हरी झंडी-
गांधी सागर बाँध के पानी और विस्थापन की त्रासदी पर आज विधानसभा में विधायक मारु जिस तरह गरजे वो स्पीच सुनने लायक है, वॉइस ऑफ़ एमपी के यूट्यूब चैनल पर उसे पूरा सुना जा सकता है। विधायक मारु ने जिस तरह हमलावार रुख अपनाया और डेम के विस्थापितों के साथ मछुआरों का जो दर्द बयां किया, उसके जानकार कई अर्थ निकाल रहे हैं। जानकारों की मानें तो माधव भैया को हाईकमान से हरी झंडी मिल गयी लगती है और उन्हें विधानसभा के चुनाव की तैयारियों के लिए कह दिया गया लगता है।
दावेदारों की है लम्बी लाईन-
गौरतलब है कि जिस तरह नीमच में दिलीप बापू की अराइवल उनकी ही पार्टी में विधानसभा के दावेदारों की लम्बी फौज है, ठीक उसी तरह मनासा में भी विधायक मारु के अराइवल कई नेता अपनी उम्मीदवारी दिखा रहे हैं। इस समय जब भाजपा का सितारा बुलंद है तो सबको चाह है वो विधायक बन जाए। इन्हीं सब विपरीत परिस्तिथियों में आज माधव मारु ने विधानसभा में जिस तरह दहाड़ लगाईं उसके कई मायने निकाले जा रहे हैं और माना जा रहा है कि माधव भैया ने अब विधानसभा चुनाव को लेकर कमर कस ली है और वे अपने विरोधियो का मुंह बंद कर देंगे। इसीलिए आज उन्होंने विधानसभा में मनासा क्षेत्र के सबसे संवेदनशील मुद्दे को उठाया, क्योकि विस्थापन की त्रासदी आज भी रामपुरा पट्टी के कई गाँव झेल रहे हैं।