नीमच। महाभारत का युद्ध नारी के कारण हुआ था। राम रावण युद्ध का कारण भी नारी सीता ही थी।संसार में रहते हुए मनुष्य कभी-कभी नारी का अपमान करता है जो कि अनुचित है जबकि नारी का सम्मान करना चाहिए।जहां नारी का सम्मान होता है । जहां नारी की पूजा होती है वहां देवता का वास होता है। नारी का सम्मान करेंगे तभी हमारे जीवन में सम्मान हो सकता है।यह बात स्वामी सत्यानंद सरस्वती महाराज ने कही।
वे ग्वालटोली श्री राधा कृष्ण मंदिर में चंद्रवंशी ग्वाला समाज के मार्गदर्शन में कथा श्रीमद् भागवत सेवा समिति के तत्वावधान में आयोजित चातुर्मास धर्म सभा में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि जीवन में कभी भी किसी को दुखी नहीं करना चाहिए। संत महात्मा और भगवान भाव के भूखे होते हैं उन्हें संसार की किसी संपत्ति यह अन्य किसी वस्तु से कोई मोह नहीं होता है। अतिथि के प्रति श्रद्धा नीमच में देखी है जो गौरव का विषय है ।शास्त्रों में भी कहा गया है कि अतिथि देवता के समान होता है। दृढ़ संकल्प हो तो कोई भी कार्य कठिन नहीं होता है। एकलव्य ने गुरु द्रोणाचार्य के मना करने के बाद भी मिट्टी की मूर्ति बनाकर तीर कमान चलाना सीख लिया और अपना अंगूठा काट कर दक्षिणा के रूप में दे दिया और संसार को एक आदर्श प्रेरणा प्रस्तुत की।पाप का फल सदैव अशांति के रूप में मिलता है इसलिए सदैव पुण्य कर्म करना चाहिए।दिव्य सत्संग चातुर्मास धर्म सभा महाआरती में पूर्व कृषि उपज मंडी अध्यक्ष उमराव सिंह गुर्जर, ग्वाला समाज के धन्नालाल पटेल,श्यामलाल चौधरी,सत्संग समारोह के मुख्य संकल्प कर्ता पप्पू हलवाई,श्री मदभागवत उत्सव समिति के गोपाल हलवाई,अशोक सुराह,सुनील मंगवानी,अभय जैन,विनोद ग्वाला,गुड्डा हलवाई सहित अनेक गणमान्य,धर्म प्रेमी जन उपस्थित थे। सभा का संचालन समिति सदस्य हरगोविंद दीवान ने किया।महा आरती के बाद प्रसाद वितरण किया गया।
पुरुष के नाम के आगे कभी देवता लगाते हैं नहीं और सभी हंस गए-
चातुर्मास राम कथा के मध्य जब स्वामी सत्यानंद सरस्वती महाराज ने कहा कि नारी का चरित्र महान होता है। संसार में नारी के नाम के आगे ही देवी की उपमा लगती है लेकिन क्या कभी पुरुष के नाम के आगे देवता लगा है नहीं। और धर्म सभा में उपस्थित सभी श्रद्धालु भक्त हंस गए।