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May 9, 2024, 5:56 pm
NEWS : नवम पट्टधर आचार्य श्री रामेश के सानिध्य में चित्तौड़गढ़ में वर्षीतप का पारणा महोत्सव 10 मई को, पुण्य होने पर ही धर्माराधना की अनूकूलता रहती है- आदित्य मुनि जी म सा, पढ़े रेखा खाबिया की खबर 

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चित्तौड़गढ़। आचार्यश्री रामेश की असीम कृपा से अक्षय तृतीया पारणा महोत्सव का लाभ श्री साधुमार्गी जैन श्रावक संघ चित्तौड़गढ़ को मिला है। लगभग 102 वर्षीतप के तपस्वीयों का पदार्पण हो चुका है। 10 मई शुक्रवार को अक्षय तृतीया पारणा महोत्सव स्थानीय विद्यासागर मांगलिक धाम में होगा। पारणा महोत्सव से पूर्व आचार्य नानेश रामेश समता भवन में आचार्यश्री रामेश एवं उपाध्याय प्रवर श्री राजेश मुनि जी म.सा. आदि के प्रवचन का लाभ मिलेगा। 
आचार्य श्री नानेश रामेश समता भवन में विशाल धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए शासन दीपक आदित्य मुनि जी म.सा. ने कहा कि जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव जिनका नाम आदिनाथ भगवान भी है। नमिराजा एवं मरूदेवी के सुपुत्र ऋषभ के गर्भ में आने से पूर्व माता मरूदेवी को पुत्र स्वप्न आए थे, जिनका वर्णन करते हुए शकेन्द्रदेव ने बताया कि उनके गर्भ में महापुत्रवान जीवन आने वाला है। मरूदेवी माता के गोद में आने तक ऋषभ के कारण किसी प्रकार की तकलीफ उन्हें नहीं हुई। ऋषभ किसी को कष्ट नहीं पहुंचाने वाले थे। जन्म होने पर देवताओं ने जन्मोत्सव मनाया। नामकरण देवताओं के राजा इन्द्र ने ऋषभ के रूप में किया। देवता उन्हें खेल खिलाने आते थे। राजा इन्द्र के एक हाथ में गन्ना देखकर ऋषभ ने उसे पकड़ने की कोशिश की। गन्ना पकड़ा और खाने लगे। गन्ने को इक्षु कहा जाता है। तभी से इक्षुकुल नाम पड़ा और ऋषभ इक्षुकुल भी कहलाने लगे। बाद में 22 तीर्थंकर ओर हुए जो सभी इक्षु कुल के थे। ऋषभ का विवाह सुनंदा तथा सुमंगला से हुआ। उनके 100 पुत्र हुए और दो पुत्रियां ब्राह्मणी और सुन्दरी थी। सुपत्रों को सम्पत्ति का प्रबंध सौपा गया। दोनों पुत्रियों को कलाएं सिखाई। ब्राह्मणी को लेखन लिपीकार्य सिखाया, सुन्दरी को गणित सिखाया। ब्राह्मणी ने महिला उत्थान का कार्य किया। ऋषभदेव ने असि (अस्त्र शास्त्र, मसि (लेनदेन व्यापार) कृषि (खेती बाड़ी) की जानकारी देकर अन्य जीवों को जीवन निर्वाह का तरीका बताया। यतनापूर्वक सभी कार्य करना सिखाया। 84 लाख पूर्व वर्षों तक शासन किया। सभी ऋद्धि सिद्धि के देवता उनके चरणों में निवास करते थे। ऋषभ को विचार आया कि सुत बंध नर नार किया है अनंत वार, काम नहीं आवे दिल में ऐसे धारा और माता को प्रणाम करने गये। माता से निवेदन किया दीक्षा लेना है, संयम के मार्ग पर जाना है। माता को विश्वास था पुत्र पर। माता को प्रणाम करके संयम मार्ग पर बढ़ गए। यह विनय का अनुपम उदाहरण था। उस समय माता पिता को प्रणाम करके सभी कार्य पूर्ण किये केजाते थे, पूरा सम्मान दिया जाता था। सभी आज्ञाकारी होते थे, माता पिता को साता देने वाले संस्कार होते थे।
ऋषभ ग्रामानुग्राम पैदल विहार करके संयम का पालन कर रहे थे। अनेक शिक्षाएं देते हुए ऋषभ को 365 दिन आहार का योग बना। जनता उन्हें सोना चांदी धन धान्य देने को आतूर रहती लेकिन वो नहीं लेते थे। 365 दिन बाद जब प्रासूक गन्ने का रस मिला तब ऋषभदेव का पारणा हुआ। वह दिन अक्षय तृतीया का था। तभी से अक्षय तृतीया का जैन धर्म में महत्व माना जाने लगा। अनेक तपस्वी वर्षीतप की तपस्या करते हैं, उनका वर्षीतक का पारणा अक्षय तृतीया को होता है जिसमें दो वर्ष लगातार एक दिन उपवास एक दिन पारणा होता है।
सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति के बाद यदि धर्माराधना संयम का भाव आए तो यह पुण्यनुबंधी पुण्य कहलाता है जहां परम सुख की प्राप्ति होती है। सभी खाद्य सामग्री सामने हो और कहें कि मेरे त्याग है। यह त्याग भावना धर्म भावना भी पुण्यानुबंधी पुण्य योग से होती है। यदि कोई विपरीत है तो पापनुबंधी है। धर्म ध्यान सामायिक व्याख्यान श्रवण दर्शन वंदन स्वाध्याय की भावना संयम पथ पर बढ़ना, परम वैभव होते हुए भी ऐसे भाव हो तो समझना कि पुण्यानुबंधी पुण्य का उदय है। पुण्य करेंगे तो पुण्यानुबंधी पुण्य से होगा और पुण्य से होगा तो धर्म क्रिया की अनुकूलता रहेगी। कंस तथा रावण के पापनुबंधी पुण्य था इसलिए उनकी विपरीत क्रियाएं हुई। जीवन की प्रत्येक क्रियाएं यतनापूर्वक धर्मयुक्त होनी चाहिए। पांच महाव्रत धारण करते हुए ऋषभदेव ने स्वयं लोच किया, संयम हेतु आगे बढ़े और लक्ष्य प्राप्त किया। भजन - ऐसा अवसर मिला है मिलेगा कहा जिनशासन मिला है मिलेगा कहां..। संसार स्वईच्छा से छोड़ना चाहिये अन्यथा संसार वाले आपको छोड़ देंगे। जीवन का अंत हो उससे पहले संयम में जीना होगा। बाद में सब कुछ अपने आप छोड़ना पड़ेगा। हंसते हंसते संयम मार्ग में बढ़े, धर्म क्रियाएं करें। भोगों में रोगों का भय है। रोग होने पर शरीर भी छोड़ना पड़ेगा, बाकी तो सब छूटेगा ही। धर्म ध्यान से जीवन जीएं, महापुरूषों के जीवन से प्रेरणा लें। आनन्द होगा।
प्रवचन सभा में पूर्व में श्री अटलमुनि जी म.सा. ने सम्बोधित करते हुए फरमाया कि संघ में सेवा देने के भाव रखें। मेहमान नहीं स्वयंसेवक बनकर सेवा करे, सेवा लाभ लेवें। श्रीसंघ से लेना नहीं, श्रीसंघ की सेवा करना महत्वपूर्ण है। धर्म ध्यान से सेवा से जीवन सजाएं, जीवन सफल बनाएं।
धर्मसभा में संघ के महामंत्री आदित्येन्द्र सेठिया एवं महेश नाहटा ने उपस्थित सभी राष्ट्रीय पदाधिकारियों, सदस्यों, धर्मावलम्बियों, श्रीसंघों का हार्दिक स्वागत अभिनन्दन किया। तपस्याओं के प्रत्याख्यान हुए। धर्मसभा के अंत में आचार्यश्री ने मंगलपाठ सुनाया।
उल्लेखनीय है कि भदेसर में संथारा साधिका श्री रामकस्तूर जी म.सा. के संथारा पूर्ण धार्मिक श्रद्धा से गतिमान है। अधिकाधिक नवकार मंत्र की प्रेरणा दी। चारित्रिक आत्माओं के भी तपस्या गतिमान है। दोपहर में सामूहिक नवकार मंत्र जाप हुए। सायंकाल प्रतिक्रमण और ज्ञानचर्चा कार्यक्रम हुए। 

अक्षय तृतीया पारणा 10 मई को- 
तीर्थंकर प्रभु ऋषभदेव भगवान की लम्बी तपस्या (365 दिन) के पश्चात अक्षय तृतीया को ईक्षुरस से पारणा हुआ था। इसीलिये जैन धर्म में अक्षय तृतीया का बहुत महत्व है। तपस्वीयों के वर्षीतप पूर्ण होने पर अक्षय तृतीया को पारणा होता है। संघ अध्यक्ष रोशन लाल लोढ़ा ने अधिकाधिक धर्मलाभ की अपील की। इस संबंध में अखिल भारतवर्षीय साधुमार्गी जैन श्रावक संघ, साधुमार्गी जैन श्रावक संघ, समता युवा संघ, समता महिला मण्डल, समता बहु मंडल सहित समग्र जैन समाज द्वारा स्वागत/अभिनन्दन एवं आदर्श त्याग की अनुमोदना की जाएगी।

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