नीमच। मालवा और मेवाड़ के अफीम किसान अपनी लंबित मांगों को लेकर लगातार संघर्ष कर रहे हैं। शनिवार को नीमच कृषि उपज मंडी प्रांगण में बड़ी संख्या में काश्तकार एकत्र हुए और आगामी अफीम पॉलिसी 2025-26 को लेकर अपनी नाराजगी प्रकट की। किसानों ने आरोप लगाया कि सरकार अफीम नीति बनाने में किसानों को शामिल नहीं कर रही है और अफीम सलाहकार समिति की बैठकों में वास्तविक काश्तकारों की आवाज दबाई जा रही है।
दिल्ली से नीमच तक संघर्ष-
किसानों ने बताया कि वे लंबे समय से दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं, किंतु उनकी मांगों पर ठोस निर्णय नहीं लिया गया। अफीम किसानों ने कहा कि उनकी परंपरागत खेती को कमजोर करने के लिए सीपीएस पद्धति लागू की गई, जिसका किसानों ने कभी समर्थन नहीं किया। किसानों का कहना है कि यह पद्धति खेती के अधिकार को कॉर्पाेरेट जगत के हाथों में सौंपने की साजिश है।
नई पॉलिसी को लेकर संशय-
सूत्रों के अनुसार आगामी 2025-26 की अफीम पॉलिसी में सरकार सीपीएस पट्टों को होल्ड पर रख सकती है। किसानों ने इसे अपनी संघर्ष यात्रा की बड़ी जीत बताया, लेकिन साथ ही चेतावनी दी कि यदि उनकी मूलभूत मांगों पर विचार नहीं किया गया तो आंदोलन और तेज किया जाएगा।
संगठन का विस्तार-
बैठक में संगठनात्मक बदलाव भी किए गए। स्वर्गीय नरसिंहदास बैरागी की जगह महासचिव भोपाल सिंह को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया। वहीं राजस्थान से अनिल तंवर को प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया गया। किसानों ने कहा कि संगठन को मजबूत बनाकर ही प्रधानमंत्री और केंद्र सरकार तक अपनी आवाज को मजबूती से पहुंचाया जा सकेगा।
किसानों की प्रमुख मांगें-
बैठक में किसानों ने अपनी मांगों को स्पष्ट रूप से रखते हुए कहा कि सीपीएस पद्धति को समाप्त किया जाए। परंपरागत अफीम किसानों को नियमित पट्टे दिए जाएं। डोडाचूरा (अफीम का उपोत्पाद) की सरकारी खरीदी शुरू की जाए। अफीम कारखानों को आधुनिक तकनीक और उपकरणों से हाइटेक किया जाए। अफीम का उचित भाव बढ़ाया जाए।
डोडाचूरा की खरीदी बंद कर संकट में धकेला-
नीमच की कृषि उपज मंडी में प्रदर्शन कर रहे किसानों का कहना था कि जैसे गाय दूध देती है तो गोबर भी देती है, उसी प्रकार अफीम से निकलने वाला डोडाचूरा भी उपोत्पाद है, जिसे सरकार द्वारा खरीदना चाहिए। उन्होंने आरोप लगाया कि डोडाचूरा की खरीदी बंद कर सरकार ने किसानों को आर्थिक संकट में धकेल दिया है।
किसानों को आर्थिक गुलामी की ओर धकेला जा रहा-
किसानों ने आरोप लगाया कि भ्रष्ट अधिकारी और लालची नेता मिलकर अफीम काश्तकारों को उनके हक से वंचित कर रहे हैं। किसान बोले- “हम 2008 से आंदोलन कर रहे हैं। न्यायालय ने भी कई बार विभागीय गलतियों को उजागर किया, लेकिन सरकार सब जानते हुए भी अनजान बनी हुई है। अफीम किसान पारदर्शिता से खेती करता है, फिर भी उसे संदेह की नजर से देखा जाता है। यह आर्थिक गुलामी की ओर धकेलने जैसा है।”
मीडिया और लोकतंत्र को धन्यवाद-
बैठक में किसानों ने कहा कि वॉईस एमपी न्यूज चैनल ने हमेशा उनकी आवाज दिल्ली दरबार तक पहुंचाई है। “लोकतंत्र का चौथा स्तंभ लगातार सजग रहा, जिसने हमारी बात शासन तक रखी। हम चाहते हैं कि सरकार किसानों की भावनाओं को समझे और परंपरागत खेती को बचाए।