इंदौर। जैन धर्म जैनों का नहीं है, जैन धर्म सभी जातियों के लिए है। जैन धर्म में केवल जैनियों के उद्धार की बात नहीं कहीं। 3 लोक पर शासन करने वाले तीर्थंकर के हृदय स्थल पर एक चिन्ह होता है, जिसको श्रीवत्स कहते हैं, यह चिन्ह वात्सल्य का प्रतीक होता है। भगवान माता-पिता, पत्नी और बच्चों को छोड़ चुके हैं। अब यह तीन लोक में रहने वाले जीवों को अपना मानते हैं। एक समाज, सूर्य को जल चढ़ाती है बाकी नहीं चढ़ाते, पर सूर्य कभी भेदभाव नहीं करता, उसे आपसे कोई अपेक्षा नहीं है। ऐसे ही भगवान को आपसे कोई अपेक्षा नहीं है। हमें देवी-देवताओं और भगवान में अंतर मालूम नहीं है, इसीलिए हम उन्हें भगवान जैसा सम्मान देने लगे। भगवान का कोई परिवार नहीं, उनके लिए सभी समान हैं।
बड़ा गणपति स्थित मोदीजी की नसिया में आचार्य विहर्ष सागर महाराज ने चातुर्मास के दौरान चल रहे नित्य प्रवचन में यह बात कही। दिगंबर जैन समाज सामाजिक संसद इंदौर एवं सोशल ग्रुप फेडरेशन इंदौर रीजन के तत्वावधान में चल रहे चातुर्मास में आचार्यश्री ने कहा कि वसुधैव कुटुंबकम् का मतलब है वसुधा पर रहने वाले सभी का एक कुटुंब है। दिगंबर जैन मुनि नग्न रहते हैं, वे गरीब नहीं हैं, वह तो राजाओं के भी महाराजा हैं, मुनियों के पास सबसे बड़ा धन है- सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान और सम्यक चारित्र। ये तीन रत्न बिरलों के पास ही होते हैं। आचार्यश्री कहते हैं- मन से शहंशाह बनो।
दिगंबर जैन समाज सामाजिक संसद के प्रचार प्रमुख सतीश जैन ने बताया कि श्री भक्तामर प्रशिक्षण शिविर बुधवार से प्रातः 8रू30 बजे प्रारंभ हो गया है, जो 14 अगस्त तक चलेगा।