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October 15, 2023, 12:00 pm
BIG NEWS : महाराजा अग्रसेन की 5147वीं जयंती पर विशेष, अग्रवंश और दिशाहीन युवा पीढ़ी, पढ़े मुकेश पार्टनर की खबर  

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नीमच। मुकेश पार्टनर पूर्व कोषाध्यक्ष अग्रवाल समाज नीमच ने एक प्रेस नोट जारी करते हुए बताया कि वर्तमान काल को शरण काल कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। इस विघटन काल के साथ स्वार्थ सिद्धि काल भी कहा जाने लगा है। तार-तार होती मर्यादाएं टूटे संयुक्त परिवार संस्कार विहीन होता मनुष्य और कहीं उस भविष्यवाणी को सत्य सिद्ध तो नहीं कर रहा जैसा की 5221 वर्ष पूर्व भगवान श्री कृष्ण ने गीता का उपदेश देते हुए पार्थ से कहा था कि जिस कुल में संतान माता-पिता का सम्मान करती है उस कुल का गौरव बढ़ना निश्चित है। ऐसा क्यों कहा गया विचार करना आवश्यक है। हमारे शास्त्रों में प्रथम पूजनीय भगवान गणेश ने अपने माता-पिता शिव पार्वती को सम्माननीय मानकर उनकी परिक्रमा को ही ब्रह्मांड की परिक्रमा मानकर संसार के सामने एक आदर्श उदाहरण प्रस्तुत किया और संसार को यह संदेश दिया की माता-पिता की सेवा ही परमात्मा की सच्ची सेवा है। संतान को जन्म देने वाले माता-पिता महान होते हैं। महानगरों में लिव इन जैसी को कुप्रथाओं से सनातन धर्म का अमृत क्षारीय हो रहा है किसी ने उचित कहा कि ऐसे समय में अर्थात विपत्ति निवारण में तथा समाज हित में वैश्य समाज की भूमिका प्रमुख स्वत: प्रमुख होने लग जाती है।
आज हम अग्रवंशीय पूरे हर्षोल्लाह के साथ इस काल में हमारे पितृ पुरुष महाराजा अग्रसेन की 5147वीं जयंती मना रहे हैं। आधुनिक युग में हमारा धर्म व जीवन मूल्य बचाए सबसे यही सबसे बड़ी पूंजी होगी। परंतु आधुनिक शिक्षा में पश्चिमी सभ्यता के अंधानुकरण से हमारे युवा पुत्र पुत्रियां हमारे अग्रवाल धर्म से विमुख होते जा रहे हैं जिसका मुख्य कारण घर के बाहर दूसरे शहरों में विदेशी नौकरी करना है। यह बात बिल्कुल सत्य है कि जीविका उपार्जन के लिए कुछ ना कुछ व्यापार अथवा नौकरी सभी को करना पड़ती है। परंतु आधुनिक परिवेश एवं अंग्रेजी सभ्यता के प्रभाव में हमारे बेटे बेटियां धर्म की मूलभूत बातों को भूल रहे हैं। हम सभी अग्रवंशियों का दायित्व है कि हम हमारे धर्म की रक्षा करें। यह तभी संभव है जबकि हमारे बच्चों में धर्म की शिक्षा का भी बीजारोपण करें।
अभी कुछ वर्षों से यह देखने में आ रहा है कि उच्च शिक्षित हो या अल्प शिक्षित नौजवान अपने आसपास के माहौल को देखते हुए अन्य धर्म के नौजवानों की ओर आकर्षित होकर अग्रवाल समाज के अलावा अन्य धर्म के लोगों से भी विवाह कर रहे हैं जो अग्रवाल धर्म के लिए बहुत चिंताजनक बात है यदि इसी प्रकार अग्रबंशी नौजवान दूसरे धर्म में विवाह करेंगे तो उनकी होने वाली संतान वर्ण शंकर पैदा होगी जो ना तो अग्रवाल धर्म को समझेगी नहीं अन्य धर्म को समझेगी हमारे साधु संत ने भी समय-समय पर इस बात के लिए काफी चिंतन किया है और इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि धर्म की रक्षा करने के लिए हमारे समाज के बच्चे अग्रवाल समाज में ही विवाह करें जिससे हमारा धर्म अगली पीढ़ी तक सुरक्षित पहुंच सके। धर्मो रक्षति रक्षिता अर्थात राम धर्म की रक्षा का पालन करेंगे तो धर्म हमारी रक्षा करेगा।
वैश्य धर्म से दीक्षित महाराजा अग्रसेन जी का जीवन चरित्र दिशाहीन समाज के लिए आवश्यक है।प्रेरणा का सूत्र है भगवान श्री कृष्ण के समकालीन युवा अग्रसेनजी ने हमें सिखाया कि कुल की महत्ता क्या होती है। शताधिक होने पर ही कुल की व्यवस्था पर ध्यान देना चाहिए उससे पहले नहीं क्योंकि तब संबंधों की मधुरता का बोध होना संभव नहीं है स्वावलंबन स्वराज्य निर्माण जलचर नक्षत्र एवं भूचर अर्थात नाग और देवताओं को हम अपना इतिहास कैसे बनाएं निर्धनता के निवारण हेतु कर्म श्रेष्ठ कर है समृद्धि शाली को चाहिए कि अभावग्रस्त को भिक्षा न देकर व्यापार के साधन उपलब्ध कराकर राष्ट्र की समृद्धि में उसकी सहभागिता निश्चित करें यदि हर व्यक्ति एक निर्धन को हर घर से एक-एक रुपया दे तो तब वहां ना निर्धनता है कि ना भ्रष्टाचार पनपेगा ना ही चोरी चकारी होगी महारानी माधवी ने नारी शक्ति को आत्मनिर्भर बनाने के लिए साथ-साथ उन्हें संस्कार का प्रमुख सूत्र माना है जल संचय हेतु बांधों का निर्माण करना शत्रु को चातुर्य पूर्वक अपने पक्ष में करना अहिंसा प्रेम करुणा के द्वारा समाज को सुखी बनाना तथा शक्ति के साथ-साथ राजनीति एवं कूटनीति के प्रधान तत्वों को आत्मसात करना भी हमें सिखाया है।
महानगरों में ऊंची कंपनियों में ऊंचे पैकेज पर युवा वर्ग रोजगार के लिए पहुंच रहा है ऐसे में वह अपने माता-पिता से दूर होता जा रहा है इसका प्रमुख कारण युवा वर्ग का महंगाई के युग में आर्थिक आकर्षण है। संयुक्त परिवार का विखंडन आधुनिक युग की एक अलग समस्या है। उच्च शिक्षित संतान बेटा हो या बेटी दोनों ही रोजगार के लिए महानगरों की ओर आकर्षित हो रहे हैं। लेकिन सनातन धर्म और महाराजा अग्रसेन ने भारतीय संस्कृति के अनुरूप अपने ही परिवारजन के साथ रहकर रोजगार जीविका उपार्जन को महत्वपूर्ण बताया था लेकिन आधुनिक युग बदलते हुए शिक्षा बदली रोजगार के क्षेत्र बदले और अब युवा भी बदल गया है। प्रत्येक माता-पिता का सपना होता है कि उसकी संतान आत्मनिर्भर बनकर बुढ़ापे में माता-पिता की सेवा करें और उनकी लाठी बनकर सहारा बने। लेकिन वास्तविकता आज समाज के सामने कुछ और ही आ रही है प्रत्येक युवा वर्ग उच्च शिक्षा के कारण महानगरों में रोजगारके लिए लाखों के पैकेज प्राप्त कर पहुंच रहे हैं और वह अपने माता-पिता को उनके पैतृक गांव में ही अकेला जीवन यापन को मजबूर करने के लिए छोड़ रहे है।

 

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