रतलाम। आज 14 जून को विश्व रक्तदाता दिवस मनाया जा रहा है। इस दिवस का उद्देश्य केवल उत्सव मनाना नहीं, बल्कि समूचे विश्व को रक्तदान के लिए प्रेरित करना है।
आज भी कई लोगों में यह भ्रांति है कि रक्तदान करने से शरीर कमजोर हो जाता है या रक्त की पूर्ति नहीं हो पाती, लेकिन यह पूरी तरह गलत धारणा है। चिकित्सकीय शोध यह सिद्ध कर चुके हैं कि रक्तदान के 24 घंटे के भीतर शरीर पुनः उतना ही रक्त बना लेता है। हाल ही में जारी एक शोध में यह बात सामने आई है कि नियमित रक्तदान करने वाले व्यक्ति में हार्ट अटैक की संभावना 80 प्रतिशत तक कम हो जाती है।
हमारे समाज में डॉक्टरों को ‘धरती का भगवान’ कहा जाता है, लेकिन मेरा मानना है कि रक्तदाता भी उस श्रेणी में सम्मिलित होने के पूर्ण अधिकारी हैं। डॉक्टर तो अपनी फीस लेते हैं, परंतु रक्तदाता बिना किसी स्वार्थ के, बिना किसी पारिश्रमिक के, ज़रूरतमंदों के लिए अपना खून देते हैं। कई बार ये रक्तवीर अपनी आजीविका तक छोड़कर, खुद के खर्च पर समय निकालकर ज़रूरतमंदों की सेवा करते हैं।
इन रक्तदाताओं की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वे कभी जात-पात, धर्म या वर्ग का भेदभाव नहीं करते, बल्कि सिर्फ इंसानियत को प्राथमिकता देते हुए हर संभव मदद करते हैं। यह सेवा-भावना उन्हें हमारे समाज में पूजनीय बनाती है।
इस पावन अवसर पर मैं उन सभी रक्तदान वीरों को दिल से नमन और सलाम करता हूं। विशेष रूप से अंजड़ (जिला बड़वानी) के मेरे अज़ीज़ दोस्त जोएब भाई आसिफ और उनकी बोहरा समाज की टीम को इस सेवा कार्य के लिए ढेरों शुभकामनाएं देता हूं। उन्होंने और उनके साथियों ने ब्लड बैंक के माध्यम से हजारों ज़िंदगियों को बचाने का सराहनीय कार्य किया है। यह फरिश्ता रूपी व्यक्तित्व हमारे समाज के लिए प्रेरणा हैं।