चित्तौड़गढ़। ब्रह्मा कुमारीज प्रताप नगर सेवा केंद्र पर राजयोगिनी दादी प्रकाशमणि की 18 वीं पुण्यतिथि मनाई गई। सेवा केंद्र प्रभारी भी के आशा दीदी ने कहा कि दिव्यता की मूर्ति महान तपस्वी आध्यात्मिकता से परिपूर्ण आदरणीया दादी जी बचपन से ही दिव्य आभा से आलोकित थी।
दादी जी की अलौकिक शक्ति को पहचानकर प्रजापिता ब्रह्मा बाबा ने दादी प्रकाशमणि जी व अन्य माताओं कुमारियों का संगठन बनाकर अपना सर्वस्व ईश्वरीय सेवा अर्थ समर्पित किया। तब से दादी जी इस ईश्वरीय विश्वविद्यालय की एक स्थापना-स्तम्भ के रूप में आध्यत्मिक ज्ञान और राजयोग को प्रस्तुत करने में एक अनुपम प्रेरणास्रोत बनी।
दादी जी ने जिस प्रकार यज्ञ की वृद्धि की ,मातृ स्नेह से सबकी पालना की, यज्ञ का प्रशासन जिस कुशलता के साथ संभाला, उसे कोई भी भुला नहीं सकता। दादी जी बाबा की अति दुलारी, सच्चाई और पवित्रता की प्रतिमूर्ति थी। दादी जी शुरू से ही यज्ञ के प्रशासन में सदा आगे रहीं।
ईश्वरीय विश्वविद्यालय के साकार संस्थापक प्रजापिता ब्रह्मा बाबा ने अपने देहावसान की पूर्व संध्या पर दादी जी की अदम्य साहस, निष्ठा, ईमानदारी तथा विश्व कल्याण की सेवाओं में समर्पणता को देखते हुए, अपना हाथ दादी जी के हाथ में देते हुए अपनी सर्व-शक्तियाँ हस्तांतरित कर ईश्वरीय विश्वविद्यालय की बागडोर सौंपी। तब से लेकर जीवन के अंतिम क्षण तक दादी जी ने कुशल प्रशासन के द्वारा अपनी अथक सेवाएं देते हुए सभी ब्रह्मा-वत्सों को एकता के सूत्र में पिरोकर हर एक की विशेषता को कार्य में लगाते हुए अनेकानेक यादगार कायम किये। सभी ने दादी जी को पुष्प अर्पित किए , दादी जी को भोग स्वीकार कराया और सभी को प्रसाद वितरित किया गया।