नीमच। मुहर्रम इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना है, जो इमाम हुसैन (अ.स.) और उनके साथियों के महान बलिदान की याद में मनाया जाता है। यह महीना न्याय, धैर्य और अत्याचार के खिलाफ डटकर खड़े होने का प्रतीक है।
अशरा- शहादत के दस दिन
मुहर्रम के पहले दस दिनों को अशरा कहा जाता है। 61 हिजरी में कर्बला की धरती पर इमाम हुसैन (अ.स.) और उनके परिवार व साथियों ने सत्य और इंसाफ़ के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। यह घटना इस्लामी इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं में गिनी जाती है।
मुहर्रम की रस्में-
इन दिनों में विभिन्न धार्मिक और सामाजिक परंपराएं निभाई जाती हैं, जैसे-
मजलिस और मातम- इमाम हुसैन (अ.स.) की शहादत को याद कर शोक सभाएं होती हैं।
ताज़िए निकालना- इमाम के रोज़े का प्रतीक ताज़िया जुलूस के रूप में निकाला जाता है।
सबीलें लगाना- कर्बला के प्यासे शहीदों की याद में पानी, शरबत या दूध बांटा जाता है।
मर्सिये और नौहे- मजलिसों में करुणामय गीतों के माध्यम से कर्बला की घटनाओं का स्मरण किया जाता है।
रोज़ा रखना- तसुआ (9वां दिन) और आशूरा (10वां दिन) पर कई मुसलमान उपवास रखते हैं।
दुआ और इबादत- इन दिनों में विशेष दुआओं और इबादतों का महत्व होता है।
आशूरा- बलिदान का प्रतीक
मुहर्रम की दसवीं तारीख, आशूरा को इमाम हुसैन (अ.स.) और उनके 72 साथियों को यज़ीद की सेना ने शहीद कर दिया था। यह दिन ग़म और आत्मचिंतन का होता है, जो अन्याय के विरुद्ध लड़ने की प्रेरणा देता है।
नीमच में मुहर्रम की तैयारियां-
नीमच में बोहरा शिया समाज सहित अन्य मुस्लिम समुदाय मुहर्रम की तैयारियों में जुटे हैं। शहर में वाअज़, मजलिस, सबील और ताज़िया जुलूसों की योजना बनाई जा रही है। समाजजन इमाम हुसैन (अ.स.) की कुर्बानी को श्रद्धापूर्वक याद करेंगे।
मुहर्रम का संदेश-
मुहर्रम हमें यह सिखाता है कि सच्चाई और इंसाफ़ की राह पर चलना चाहिए, चाहे हालात कितने भी कठिन हों।
हर दिन आशूरा है, हर ज़मीन कर्बला- यह संदेश आज भी अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध लड़ने की प्रेरणा देता है।