देश में यदि बीजेपी की मजबूती की बात की जाए तो वो सबसे मजबूत हिंदी पट्टी में मानी जाती है और यहीं वो पट्टी है जहां संघ परिवार का गढ़ है। यानी मालवा जो एमपी का हिस्सा है कुल मिलाकर संक्षेप में कहे तो इस साल बीजेपी की अग्नि परीक्षा उसके अपने गढ़ यानी हिंदी पट्टी में है, जहां एमपी, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव होने हैं।
इसमें सबसे अहम बात यह है कि इस हिंदी पट्टी में चुनाव से पहले उसके दो-दो हाथ कर्नाटक में कांग्रेस से हो गए, जहां उसे बुरी हार का मुंह देखना पड़ा। इस हार ने उसे एलर्ट कर दिया और यह भी समझ आ गयी की आने वाले विधानसभा चुनाव में उसका रास्ता आसान नहीं है और ये हिंदी पट्टी देश की नब्ज़ है। यदि यहां गए तो फिर 2024 के आम चुनाव में वाट लगना तय है।
जानकारों की मानें तो बीजेपी ने इसे चेलेंज की तरह लेना शुरू कर दिया है और ऊपर से कड़े निर्देश है कि विधायक और मंत्री भाजपा कार्यकर्ताओं की जमकर जी हुजूरी करें और हर स्तर पर नाराज़गी को दूर करें, ताकि कार्यकर्ताओं में पार्टी की सरकार के प्रति फील गुड आ सके। उसी का नतीजा है कि सरकार में मंत्री प्रद्युमन सिंह ने अपने क्षेत्र में पार्टी कार्यकर्ताओं से जमकर हाथा जोड़ी की। इसके अलावा समूचे प्रदेश में प्रशासनिक अफसरों के माध्यम से यह कोशिश की जा रही है कि जनता के काम हो, लेकिन ये कोशिश कितनी कामयाब होगी ये आने वाला वक्त ही बताएगा।
उधर दूसरी तरफ कांग्रेस को यह साफ़ समझ में आ गया है कि ये किसानों का प्रदेश है और किसान उतने खुश नहीं है। इतना करंट सरकार समझ रही है। इसके मद्देनजर आगामी 6 जून को कमल नाथ मंदसौर के पिपलिया मंडी आ रहे हैं जो वहां किसान आंदोलन में अपनी जान गवां चुके किसानों के परिजनों से मिलेंगे। पहले भी कांग्रेस को संजीवनी इसी पिपलिया मंडी से मिली थी।
वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस एमपी में करप्शन को भी मुद्दा बनाने की तैयारी में है और साथ ही बीजेपी के हिंदुत्व पर भी चोट करने की तैयारी वो कर रही है। इसी के चलते कल कांग्रेस के पूर्व मंत्री गोविन्द सिंह ने एक ब्यान में कहा कि आरएसएस का मतलब राष्ट्रीय षड्यंत्र कारी संगठन है। इससे साफ़ होता है कि कांग्रेस आने वाले दिनों में क्या करने वाली है। कुल मिलाकर हिंदी पट्टी में वोटर्स को दोनों ही दलों के बीच जोरदार जोर आजमाइश देखने का मौका मिलेगा और नेताओं को पसीना भी खूब बहाना पड़ेगा।
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