भवानीमंडी। किसी को दृष्टि का दान करना परोपकार का सबसे बड़ा माध्यम है, एवं किसी परिवार में जब यह परोपकारी पहल होती है और उससे जो आत्मसंतोष प्राप्त होता है, वही आगे नेत्रदान की परंपरा बन जाता है, भवानीमंडी में भी नेत्रदान अब परिवार की परंपरा का हिस्सा बनता जा रहा है, कुछ समय पूर्व अपनी धर्मपत्नी का नेत्रदान करवाने के पश्चात समाजसेवी नरेंद्र सांवला के परिवार ने अपनी मां का भी मरणोपरांत नेत्रदान करवा कर प्रेरणास्पद उदाहरण प्रस्तुत किया है। मंगलवार दोपहर को दिगंबर जैन समाज के संरक्षक नरेंद्र सांवला की माताजी लाड़बाई सांवला के स्वर्गवास पश्चात पौत्र डॉ अमित सांवला (जिला कोषाध्यक्ष खाद्य व्यापार महासंघ) एवं भतीजे कमल सांवला ने उनका नेत्रदान करवाने का निर्णय लिया, इस पर नेत्रदान प्रभारी कमलेश दलाल के द्वारा शाइन इंडिया फाउंडेशन को सूचना देने पर डॉ कुलवंत गौड़ ने दोपहर को ही कार से भवानीमंडी आकर नेत्रदान प्राप्त किया। घर पर सभी परिजनों, रिश्तेदारों एवं समाज सदस्यों के मध्य नेत्रदान संपन्न हुआ, समाजसेवी परिवार के होने के कारण लाड़बाई की मृत्यु के बाद घर पर बड़ी संख्या में लोग उपस्थित थे, महिलाओं सहित उपस्थित सभी लोगों ने नेत्रदान की प्रक्रिया को प्रत्यक्ष देखा और सहयोग किया, कुछ वर्षों पूर्व परिवार से ही प्रेमलतादेवी का नेत्रदान हो चुका था ऐसे में सभी परिवारजन नेत्रदान प्रक्रिया से अच्छी तरह से अवगत थे, इसलिए परिवार सदस्यों ने नेत्रदान प्रक्रिया में आगे होकर सहयोग किया। मृतका श्रीमती लाड़बाई का कोर्निया अच्छा पाया गया है, प्राप्त कॉर्निया को आई बैंक जयपुर भिजवा दिया गया है, जहां यह दो असहाय नेत्रहीनों को नई रोशनी प्रदान कर सकेगा।
भारत विकास परिषद के नेत्रदान प्रभारी एवं शाइन इंडिया फाउंडेशन के ज्योति मित्र कमलेश दलाल ने बताया कि यह शाइन इंडिया फाउंडेशन के सहयोग से भवानीमंडी से 78 वाँ नेत्रदान प्राप्त हुआ है, एवं यह इस महीने का तीसरा नेत्रदान है, इससे पहले जनवरी महीने में ही रामप्रसाद पोरवाल और अंगूरबाला जैन नेत्रदान हुआ है, वहीं सांवला परिवार से यह दूसरा नेत्रदान प्राप्त हुआ है, इससे पहले 13 सितंबर 2019 को प्रेमलतादेवी सांवला के देहावसान पश्चात भी परिवारजनों ने स्वयं पहल करके नेत्रदान करवाया था।
लाड़बाई सांवला के पुत्र नरेंद्र सांवला एवं पुत्र डॉ अमित सांवला के अनुसार माताजी की आंखों से किसी को नई रोशनी प्राप्त हो जाए यही सबसे बड़ा परोपकार है एवं यही अपने परिजन के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि है, नेत्रदान के माध्यम से एक अच्छा कार्य हो सकेगा इसी उद्देश्य से लाड़बाई सांवला की मृत्यु के पश्चात परिवारजनों ने तुरंत नेत्रदान का निर्णय लेकर नेत्रदान संपन्न करवाया। डॉ अमित सांवला के अनुसार पूर्व में अपनी माता प्रेमलता देवी के असामयिक वियोग का दुख पूरे परिवार को अत्यधिक था, परंतु एक संतोष था कि नेत्रदान के माध्यम से उनकी आंखों को जीवित रखा गया है, एवं लाड़बाई सांवला ने भी अपनी पुत्रवधू प्रेमलता देवी के नेत्रदान के पश्चात स्वयं के भी नेत्रदान करने का संकल्प कर लिया था।