खरगोन। रोज घर से रूखी सूखी रोटी का टिफिन पैक करके अपने घर से शहर के आसपास, दुर गांव और शहर में बसने वाले मजदुर शहरों के चौक चौराहों पर, हर रोज पौ फटते ही पहुंच जाते हैं। अपना और परिवार का पेट पालने के लिए काम की तलाश में, हर शहर में आपको अघोषित मजदूर चौराहे बन गए हैं। खरगोन में भी बस स्टैंड के पास अल सुबह,से लेकर 10,11बजे तक आपको सैकड़ों मजदूर मिलेंगे किसी को छोटे बड़े काम के लिए मजदूरों की जरुरत होती है तो वह यहां आते हैं, ऐसे व्यक्ति की मोटरसाइकिल रुकते ही उसकी तरफ 10,20 मजदूर दौड़ पड़ते हैं और पुंछने लगते भैया क्या काम है कुछ लोगों को काम नहीं पाता है ,कुछ को नहीं मिलता। रोज आते हैं ।आने जाने खर्चा भी रोज लगता है । लेकिन काम रोज नहीं मिलता निराश होकर लौट जाना पड़ता है। शहर के बीचों बीच यह लोग खड़े रहते हैं जिला मुख्यालय होने से इनके पास से कितने ही अधिकारी नेता और समाज सेवी गुजरते होंगे! लेकिन लेकिन इनपर किसी की नजर नहीं जाती, किसी ने इनकी समस्याओं को समझने की कोशिश नहीं की है । गांव में काम नहीं,काम है तो मजदुरी कम, मनरेगा योजना तो किसी काम की नहीं, काम कर भी ले तो महीनों तक मजदुरी का पैसा नहीं मिलता।