चित्तौड़गढ़। मानस मर्मज्ञ दीदी मंदाकिनी राम किंकर ने कहा कि गो स्वामी तुलसीदास जी ने जन मानस व मन मानस के लिए राम चरित मानस की स्थापना की हैं। जिसके पात्रों की लीला को अपने जीवन में खोजने का प्रयास कर जीवन को धन्य बनाए। दीदी मंदाकिनी महाकुंभ के षष्ठम दिवस सोमवार को श्रीराम कथा मंडप में व्यासपीठ से संबोधित कर रही थी। उन्होंने गुरू विश्वामित्र के साथ राम लक्ष्मण के जनकपुरी जाने से पूर्व महर्षि गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या के उद्धार का वर्णन करते हुए कहा कि अपने पति के श्राप से पाषाड़ बनी अहिल्या का अवतार श्रीराम के चरण रज से होते वे चौतन्य हो गई। उन्होंने कहा कि तुलसी स्वयं प्रभु श्रीराम से प्रश्न करते हैं कि त्रेता में अहिल्या का उद्धार हो गया, लेकिन वर्तमान कलयुग में मेरी बुद्धि रूपी अहिल्या जो निरंतर गलतियां कर बुद्धि की जड़ता प्रदान करती हैं। उस बुद्धि रूपी अहिल्या को चौतन्य करें। दीदी मंदाकिनी ने मानस में सीता स्वयंवर को धनुष यज्ञ बताते हुए कहा कि विवाह भी एक यज्ञ और स्वयंवर हैं, जो दो दृष्टिकोण होते हुए वर्तमान परिपेक्ष्य में एक सूत्र में बांधने का संदेश देते हैं। उन्होंने पाणिग्रहण संस्कार के साथ कन्यादान के महत्व को प्रकट करते हुए कहा कि कन्यादान के साथ ममता का दान भी होना चाहिए, ताकि वर वधु सुखी जीवन जी सके। उन्होंने श्रोताओं का आह्वान किया वे अपने हृदय मंडप में सीता राम का विवाह कर जीवन को धन्य बनाए, क्योंकि राम सुख के सागर हैं और सीता शांति की प्रतिक हैं। सुख शांति का मिलन ही राम राज्य का पर्याय हैं। इसी दौरान भजन गायकों द्वारा मंगल आज जनकपुर मंगल मंगल हो के साथ अवधी भाषा में अवध नगरिया से चली बारातिया भजन के दौरान ही कथा मंडप में दूल्हा बने चारों भाई ने प्रवेश किया। इसके साथ ही उत्सव के रूप में जयमाला पहनाते हुए बटुकों एवं आचार्यों द्वारा वैदिक मंत्रोच्चार के साथ राजा दशरथ के चारों पुत्रों का विवाह कराया गया। इस बीच भजन गायकों ने अपने ही अंदाज में आज दूल्हा बने हैं, सीया के पिया और आज मिथिला नगरिया हो गई निहाल सखियां सुनाकर संपूर्ण कथा मंडप को जनकपुरी निरूपित कर दिया। इसके साथ ही व्यासपीठ की महाआरती की गई। संध्या महाआरती में पूर्व सहकारिता मंत्री उदयलाल आंजना, बंशीलाल राईवाल, गोपाल आंजना, रवि सोनी, भारत विकास परिषद के मांगीलाल मेनारिया व सदस्यगण सहित पदाधिकारियों ने भाग लेते हुए व्यासपीठ से आशीर्वाद लिया। तत्पश्चात उन्होंने वेदपीठ पर विराजित ठाकुर जी के जगन्नाथ स्वरूप के दर्शन कर स्वयं को धन्य किया।