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June 18, 2025, 11:11 am
KHABAR : ऐतिहासिक परंपरा के राजमहल में पांच दिवसीय चल रहा है धार्मिक अनुष्ठान, श्री अनुभव दास महाराज ने कहा- सांसों के मंथन से ब्रम्ह के साथ परमोक्ष की प्राप्ति होती है, पढ़े दिनेश वीरवाल की खबर 

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सरवानियां महाराज। सांसों का मंथन मनुष्य को परमोक्ष की और ले जाता है। हरेक आती जाती श्वास में राम नाम का जप करना पापी से भी बड़े पापी को तार देता है। श्वास ही परब्रम्ह है। यह बात अंतरराष्ट्रीय रामस्नेही संप्रदाय के संत अनुभव दास महाराज ने यंहा राजमहल में पांच दिवसीय सत्संग के दौरान कही। संत श्री ने कहा कि जब तक परब्रम्ह की साधना नहीं करोंगे चौरासी लाख योनियों में आना जाना लगा रहेगा। मोक्ष और परमोश्र में अंतर है। दुध को जमाकर दही बनाया जाता है और दही को मंथन कर घी बनाया जाता है ऐसे ही इस शरीर को त्यागकर आत्मा जब दुसरे शरीर में प्रवेश करती है तब अगर आप ने राम नाम रुपी मंथानी से सांसों का मंथन कर परब्रम्ह को पाया है तो निश्चित ही आपका मोक्ष हो जायेगा। मनुष्य के शरीर में सांस के रुप में परब्रम्ह परमात्मा का वास है, श्वास रुकी की शरीर की किमत कुछ नहीं रहेगी। यदि परब्रह का भाव आपके उपर चढ़ा रहेगा तो आपकी किमत है वर्ना भाव समाप्त आपकी वेल्युएशन समाप्त। 
महाराज श्री ने फ़रमाया कि गुरु के वचनों पर शंका नहीं की जाती है लेकिन गुरुओ के रुप मेंआजकल ठग बहुत गुम रहे हैं, ठग भी ऐसे ऐसे महाराज की भक्ति को आगे रखकर ठगी कर रहे हैं। लोग मिलते जाते हैं और ठगी करने ठग ठगी करते हैं। हमे पहचान है गुरु और उनके आचरणों को, आपका भ्रम अगर दुर कर दे तो आपका जुड़ाव अच्छा है वर्ना ऐसे कथित ठगी गुरुओं को छोड़ देना चाहिए। यह मृत्यु लोक है यंहा कोई जिने नहीं आया है कोई अमर नहीं है जो भी आया है उसका जाना तय है।19 जुन 2025 को संतसंग का समापन है सत्संग 15 जुन 2025 से  प्रारंभ है। सत्संग सरवानियां महाराज के राजभवन रावले में रोजाना 9रू00 बजे से 11 00 बजे तक पहली पाली में आयोजित किए जा रहे हैं तो दूसरी पाली में सांयकाल को। आयोजन महाराज कृष्णराज सिंह राणावत व श्रीधर राज सिंह राणावत परिवार द्वारा दिवंगत महाराज श्री श्रवण सिंह राणावत की आत्मा की शांति किया जा रहा है। 

रियासत कालीन राजमहल में लंबे समय बाद अनुष्ठान-
रियासत कालीन राज परंपरा के ऐतिहासिक महत्व के राजमहल से शहर वासियों का आज भी दिल से जुड़ाव है। कभी इस गांव को श्रवण भील ने बसाया था ऐसा हमारे बड़े बुजुर्ग कहा करते थे । कई वर्षों के सफ़र के बाद स्टेट की तात्कालिक ग्वालियर रियासत में उदयपुर दरबार ने यंहा पर महाराज की पदवी की स्थापना कर प्रथम महाराज के रुप में श्री मौखम सिंह राणावत शाहपुरा राजस्थान को सरवानिया का राजा (महाराज) बनाया तभी से इस नगर की पहचान सरवानियां महाराज के रुप में जानी पहचानी लगी है। इसके बाद महाराज श्री राणावत की पीढ़ियों ने इस राजमहल रावला से इस नगर पर शासन किया। ब्रिटिश इंस्ट इंडिया कंपनी की गुलामी से जब देश आजाद हुआ तब आजादी के समय एक मर्जर एक्ट लागू किया गया जिसके तहत जितने भी राजे रजवाड़े देश में थें उन्हें मर्ज कर भारत सरकार में मिला लिया गया तब से राजमहल की कमान महाराज साहब के हाथों से छुटकर मध्यप्रदेश शासन के पहले पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्रालय के हाथों में तथा बाद में नगरीय प्रशासन विकास मंत्रालय के हाथों में चली गई। लेकिन इस लंबे अंतराल के बाद यंहा अब पूर्व महाराज श्री श्रवण सिंह राणावत के निधन उपरांत उन्हें श्रद्धांजलि देने के निमित्त पांच दिवसीय धार्मिक अनुष्ठान एवं सत्संग का आयोजन किया जा रहा है।

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