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July 6, 2025, 1:24 pm
KHABAR : नर्मदा घाटों पर उमड़ा आस्था का सैलाब, 25,000 महिलाओं ने किया नर्मदा स्नान, जानिए देवशयनी एकादशी का महत्व, पढे़ खबर 

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ओंकारेश्वर। भारी बारिश के बाद भी बड़ी संख्या ओंकारेश्वर धाम में आस्था और श्रद्धा की गूंज सुनाई देने लगी है। 6 जुलाई, रविवार को देवशयनी एकादशी के पावन अवसर पर लगभग 25 हजार महिलाओं ने मां नर्मदा के पवित्र जल में स्नान कर चातुर्मास का आरंभ किया। यह अवसर न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक रहा, बल्कि क्षेत्रीय लोक परंपराओं और सनातन संस्कृति की गहराई को भी उजागर करता है।


देवशयनी एकादशी का महत्व
हिंदू धर्मशास्त्रों के अनुसार, देवशयनी एकादशी के दिन से भगवान श्रीहरि विष्णु योगनिद्रा में प्रवेश करते हैं और चार मास तक क्षीर सागर में विश्राम करते हैं। यही अवधि चातुर्मास कहलाती है, जिसमें व्रत, तप, स्नान और संयम का विशेष महत्व होता है। प्रतिवर्ष इस अवसर पर महिलाएं विशेष रूप से पुण्य की प्राप्ति, परिवार की समृद्धि और अच्छी वर्षा की कामना करती हैं।


नर्मदा घाटों पर उमड़ा आस्था का सैलाब
खंडवा, खरगोन, बुरहानपुर, सनावद, बड़वाह सहित निमाड़-मालवा अंचल से हजारों महिलाएं शनिवार की रात्रि से ही ओंकारेश्वर और खेड़ीघाट (मोरटक्का) पहुंचने लगीं। धर्मशालाएं, रेलवे स्टेशन परिसर और नर्मदा तट धार्मिक जागरण और भक्ति गीतों से गुंजायमान हो उठे. रात्रि जागरण के बाद महिलाएं में नर्मदा में पावन स्नान के लिए उमड़ीं।


पूजन, दर्शन और परिक्रमा
नर्मदा स्नान के बाद श्रद्धालुओं ने जबरेश्वर मंदिर और राधा-कृष्ण मंदिर में नारियल फोड़कर पूजन-अर्चन किया। तिलक लगाने के बाद महिलाएं ओंकारेश्वर पहुंचीं. जहां उन्होंने ओंकार पर्वत की परिक्रमा कर भगवान ओंकारेश्वर-ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन किए। संपूर्ण यात्रा का उद्देश्य आत्मिक शुद्धि, पुण्य अर्जन और लोककल्याण की भावना से प्रेरित रहा।


लोक परंपरा और सांस्कृतिक भावनाएं
चातुर्मास की शुरुआत के साथ ही ग्रामीण अंचलों में पर्व विशेष का उत्साह दिखता है। महिलाएं पारंपरिक परिधानों में सिर पर कलश और हाथों में पूजा की थाल लिए, सामूहिक भजन-कीर्तन करती हुई घाटों की ओर अग्रसर होती हैं। यह दृश्य मानो धर्म, संस्कृति और सामूहिक चेतना की एक अनुपम मिसाल बन जाता है।


देवशयनी एकादशी पर नर्मदा स्नान और ओंकार पर्वत की परिक्रमा के साथ महिलाओं द्वारा चातुर्मास का शुभारंभ आस्था और भक्ति का जीवंत उदाहरण है। यह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि सनातन संस्कृति की निरंतरता का प्रतीक है। नर्मदा तट पर उमड़ी यह श्रद्धा भावी पीढ़ियों के लिए भी प्रेरणा बनेगी।

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