मैं माता-पिता के लिए कुछ कहना चाहती हूं। माता पिता अपने बच्चों के भविष्य के बारे में सोचते हैं ।दिन रात मेहनत करते हैं। उनका भविष्य संवारने के लिए लेकिन मां-बाप ने कभी उनके वर्तमान की चिंता की है ,कि हमारे बच्चे को आज हमारी जरूरत है। सिर्फ भागना भागना भविष्य के लिए भागना ,भविष्य के चक्कर में तो बच्चों के वर्तमान पर तो ध्यान ही नहीं दिया किसी ने,कि बच्चा क्या चाहता है उसे किस चीज की जरूरत है?इस दौड़ भाग वाली जिंदगी में कभी भी माता-पिता ने थोड़ा समय अपने बच्चे के लिए निकाला है, कि कभी बच्चे के साथ बैठो ,बच्चे के साथ बातें करो, उनसे पूछो उन्हें एहसास दिलाओ कि आपके लिए वह कितना स्पेशल है ।आजकल माता-पिता ने मोबाइल को ही अपनी दुनिया बना रखा है। और वही का वही खिलौना उन्होंने अपने बच्चों के हाथ में पकड़ा दिया है। तो बच्चों ने भी उस मोबाइल को अपनी दुनिया बना लिया है। बच्चों को पढ़ाने सब कुछ नहीं होता है। बच्चों को अच्छे संस्कार देना भी बहुत जरूरी होता है। बच्चा पढ़ लिखकर इंजीनियर बन जाएगा ,डॉक्टर बन जाएगा पर एक अच्छा इंसान बनाना भी बहुत जरूरी है ।जो कि माता-पिता का काम है कि अपने बच्चे को अच्छे संस्कार दो, भगवानों के बारे में, कर्मों के बारे में अच्छे बुरे के बारे में उसे बताया जाए, अगर बच्चे को मां बाप बाहर भी भेजते हैं पढ़ाई के लिए और अगर बच्चे की दोस्ती यारी किसी गलत इंसान से भी हो जाती है तो माता-पिता के दिए हुए संस्कार उस बच्चे को कभी गलत राह पर जाने नहीं देंगे ।बच्चा भगवान का दिया हुआ बहुत प्यारा सा उपहार है ।हमें किस तरीके से संभालना है, सवारना है ,वह सिर्फ माता-पिता के ऊपर डिपेंड करता है। यदि बचपन से ही बच्चे को अच्छे संस्कार दिए जाएं ,सही गलत के लिए बताया जाए, तो उनका भविष्य कभी खराब नहीं हो सकता है। कभी भी माता-पिता को उनके भविष्य की चिंता करने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। बच्चा मतलब एक कच्ची मिट्टी जिसे आप जिस रूप में ढालना चाहो वह ढल जाएगा ।लेकिन अगर आप बचपन से यह कहे कि बच्चा है ,जाने दो बड़ा होकर सही हो जाएगा, सुधर जाएगा ,तो ऐसा नहीं होता है बड़ा होने के बाद वह मिट्टी पक्की हो जाती है ।और सिवाय टूटने के उसके पास कोई दूसरा ऑप्शन नहीं होता है ।तो इसलिए हो सके तो माता-पिता अपने 24 घंटे में से कुछ समय अपने बच्चे को दें। उनके साथ बैठे उसे बातें करें कोई तकलीफ है ।एक दोस्त बनकर उससे पूछो, उनसे मस्ती करें, उसके साथ खेले, ताकि उसे बाहर की दोस्तों की जरूरत ही नहीं पड़ेगा। उसको घर में एक दोस्त मिल जाएगा ।यदि बच्चा आपसे जिद करता है। और मां बाप उस बच्चे की जिद को पूरा करते रहते हैं।तो वह बच्चा जिद्दी बन जाता है बड़े होकर वहीं बच्चा आपसे कुछ मांगता है। और आप उसे नहीं देते हैं ।तो उसकी जिद गुस्से में डिप्रेशन में बदल जाती है। माता पिता का प्यार अपने बच्चों के लिए बहुत होता है ।पर अगर आप लोगों का प्यार बच्चे को गलत दिशा में ले कर जा रहा है ।तो वह आप पर डिपेंड करता है कि आपको बच्चे को किस तरीके से रखना है। यदि बच्चा आपसे कुछ मांगता है। जिद करता है तो उसे उसी समय वह चीज नहीं देनी है ।क्योंकि उसी समय मिली हुई चीज की कोई वैल्यू नहीं रहेगी उसके सामने, क्योंकि बच्चा सोचेगा कि मैंने मांगा मुझे मिल गया तो उसके सामने उस चीज की वैल्यू खत्म। वही चीज आप उसे टाल टाल के 5_6 दिन के बाद ला कर दीजिए सरप्राइस दे दीजिए। तब उसके चेहरे पर खुशी और उस चीज की क्या वैल्यू है वह आप खुद देखेंगे। अगर आपको अपने बच्चे को एक अच्छा इंसान बनाना है तो उसकी जिद उसी समय पूरी मत कीजिए ।बच्चे को पढ़ाई से लेकर कोई प्रेशर मत दीजिए। अगर आपका बच्चा पढ़ने में इंटरेस्टेड नहीं है, तो उसे कोई प्रैशर मत दीजिए। उसके साथ बैठिये उसे प्यार से पूछिए कि आप नहीं पढ़ना चाहते हो, तो आप क्या करना चाहते हो, अगर बच्चा अपने दिल की बात आपसे आपके सामने रखता है तो उसे सुनिए ।अपने सपने, अपने बच्चों पर मत थोपिए ,बच्चों ने क्या सपने देखे हैं उसे सुनिए ।बच्चों को पढ़ाने के लिए बाहर भेज देते हैं बच्चा वहां किस तरीके के दोस्तों से मिलता है, किस तरीके के दोस्त बनाता है, माता-पिता उस चीज से अनजान रहते हैं। और माता-पिता यह सोचते हैं कि हमारा बच्चा बाहर पढ़ाई करने गया है ।पर बच्चा वहां किस माहौल में फस गया है। माता-पिता को नहीं पता अगर बचपन से ही है बच्चों को पाठ पूजा कर्म इन सब के संस्कार मिलते हैं। तो आप निश्चिंत होकर अपने बच्चे को बाहर भेज सकते हैं ।क्योंकि आपके दिए संस्कारों पर कोई भी गलत चीज भारी नहीं पढ़ सकती। इसलिए कहीं ना कहीं मां-बाप का बहुत बड़ा रोल है। बच्चे ने खाना नहीं खाया सामने मोबाइल चला दिया और बच्चे को खाना खिला रहे हैं। उस बच्चे को एहसास ही नहीं हुआ कि उसने खाया क्या? क्यों क्योंकि उसका सारा ध्यान मोबाइल में था। बच्चे को नहीं पता है कि मोबाइल क्या है ।माता पिता ने उसे बताया कि मोबाइल क्या है ।बच्चे को बहुत सारी चीजों से आकर्षित करके खाना खिलाया जा सकता है। उसके साथ बैठा जा सकता है, उसके साथ मस्ती की जा सकती है ,पर नहीं इतना समय ही नहीं है किसी के पास कि अपने बच्चे के साथ बैठे हैं और उसी समय दें ,उसके साथ खेले , मम्मी को अगर किसी पार्टी में जाना है और अगर उसे फ्रेंड्स के साथ इंजॉय करना है तो बच्चे को पकड़ा दिया मोबाइल और वह खुद अपनी पार्टी इंजॉय कर रही है ।तो बच्चा मोबाइल का आदि बन जाता है। और हर टाइम जिद करने लगता है क्योंकि जिस तरीके से हर इंसान में मोबाइल को अपनी दुनिया बना रखा है। उसी तरह बच्चा भी मोबाइल को अपनी दुनिया समझने लगता है। आजकल के बच्चों को मामा क्या है? ,मासी क्या है? बुआ क्या है? किसी रिश्ते से कोई मतलब नहीं है ।क्योंकि मोबाइल से बाहर की दुनिया उन्होंने देखी ही नहीं ।उनको न किसी से मिलना पसंद है ना किसी से बात करना पसंद है। आप बच्चों को छोड़कर चले जाओ घर पर और हाथ में से मोबाइल दे दो उन्हें किसी से कोई मतलब नहीं है ।पर यह गलत है रिश्ते क्या होते हैं।इसके लिए भी माता पिता ही अपने बच्चे को ज्ञान देंगे। सही क्या है गलत क्या है ? यह संस्कार माता-पिता ही अपने बच्चे को देते हैं। हर समय माता पिता होने का फर्ज नहीं निभाई है। कभी उनके दोस्त बन जाइए कभी बच्चो के साथ बच्चे बन जाइए ताकि बच्चों को दोस्त कीक कमी महसूस ही ना हो।और बच्चे को भी लगे की कोई है जो उसकी चिंता करता है,कोई है जो उससे प्यार करते है।कोई तो है जिसके लिए में उसकी दुनिया हु।अपने बच्चे को स्पेशल फील करवाए और ये एहसास दिलाएं की वो आपके लिए कितने जरूरी है