मंदसौर। मध्य प्रदेश में एक ऐसा जिला भी है जिसमे 30 गाँवो के लोग रात दिन खौफ की जिंदगी जी रहे है। इन ग्रामीणों के अलावा वो राहगीर और वाहन चालक भी है जो जिनका देर रात इन गाँवो से गुजरना होता है। हम बात कर रहे है एमपी के मंदसौर जिले की। जहाँ सीतामऊ और सुवासरा क्षेत्र में कंजरों का बोलबाला है।
कंजरो की ये टाेलीया दिन हो या रात आए दिन चोरी और लूट की वारदातों को अंजाम देती आ रही है। ये सब घटनाक्रम आज से नहीं कई दशकों से होता आ रहा है। पुलिस प्रशासन भी इन कंजरो के सामने बेबस दिखाई देता है। अधिकतर ये कंजर रात में लूट की वारदात को अंजाम देते है। चाहे इनके निशाने पर क्षेत्र के आसपास के गांव हो या सीतामऊ से डग-बड़ोद मार्ग हो या सीतामऊ से सुवासरा मार्ग हो। ये कंजर रात में वाहनों को अपना निशाना बनाते है। अधिकतर लोडिंग वाहनों में भरे माल को ये कंजर लूटते है।
सीतामऊ क्षेत्र में इनकी संख्या ज्यादा है। जिसके कारण क्षेत्र के कई गाँवो में इनका आतंक है। ग्रामीण इनकी वारदातों के कारण खौफजदा जिंदगी जीने को मजबूर है। अँधेरा होते ही ग्रामीण अपने परिवार सहित जान माल की सुरक्षा में लग जाते है। कंजरो का आतंक इतना है कि चोरी और लूट की वारदात में अगर कोई विरोध करता है तो ये लोग किसी भी हद तक गुजर जाते है। अभी हाल ही में शनिवार की रात को नाहरगढ़ के गांव कोलवी में समूह संचालक से कंजरो ने रुपए लूट लिए। रात को 12 से 15 कंजरों ने कोलवी में मंदसौर निवासी एलएनटी फाइनेंस का डेली कलेक्शन वाले संस्कार शर्मा और विनाेद पाटीदार को घेरा और उनकी जेबें खंगालकर 3 हजार रुपए निकाले। दाेनाें के मोबाइल तोड़ डाले और पिटाई की। इसी दाैरान सामने गुजरते एक बाइक वाले ने उन्हें देखा तो उस पर पथराव शुरू कर दिया। बाइक सवार रूट पलटकर भाग निकला। शोर होने पर ग्रामीण घरों से लट्ठ लेकर आए तो कंजर भाग निकले। एक महीने के अंतराल में काेलवी से पिकअप चोरी, आंवरी से 4 भैंसें चोरी और रूपनी चौपाटी से 25 भेड़ें चोरी जैसी घटनाएं हुईं। ग्रामीणों के मुताबिक इनमें कंजरों का हाथ है।
सीतामऊ-सुवासरा से लगे इन गांवों में 50 साल से कंजरों का खौफ है। ये बड़े व्यापारियों-किसानों से सालाना टैक्स वसूलते हैं जिसे स्थानीय लाेग केएसटी (कंजर सुरक्षा टैक्स) कहते हैं। कंजर प्रभावित गांवों में कोलवी अकेला नहीं बल्कि सीतामऊ, सुवासरा, नाहरगढ़ पट्टी के कल्याणपुरा, सरसपुरा, भगोर, झांगरिया, गोकुलपुरा, काटका, धतुरिया, बाजखेड़ी, जवानपुरा, शक्करखेड़ी, घटाखेड़ी, रामगढ़, साताखेड़ी समेत चंबल के आसपास के गांव शामिल हैं। इसी तरह राजस्थान बाॅर्डर से लगे नाथूखेड़ी, किशोरपुरा, अंगारी, कोलवी, मोतीपुरा, छोटा गडरिया व अन्य शामिल हैं। 50 साल से ये गांव कंजरों को खरीफ, रबी सीजन की फसलों का एक हिस्सा अनिवार्य रूप से देते हैं। इनका नेटवर्क इस कदर है कि उनके लोग केवल एक बार सूचना पहुंचाते हैं। बड़े व्यापारी से लेकर क्रेशर, बस संचालक तक नकद में तो किसान सुरक्षा टैक्स के तौर पर फसल तक पहुंचाते हैं