नीमच। परमात्मा की भक्ति में संसार की आसक्ति का त्याग करना पड़ता है ।भौतिक संसार की मोह माया के त्याग बिना परमात्मा की वाणी का मार्गदर्शन नहीं मिलता है। एकाग्रता बिना परमात्मा की भक्ति नहीं मिलती है। अच्छा देखे तो भी आनंद के भाव से रहना चाहिए। यह बात श्री जैन श्वेतांबर भीड़भंजन पार्श्वनाथ मंदिर ट्रस्ट श्री संघ नीमच के तत्वावधान में बंधू बेलडी पूज्य आचार्य श्री जिनचंद्र सागरजी मसा के शिष्य रत्न नूतन आचार्य श्री प्रसन्नचंद्र सागरजी मसा ने कही। वे चातुर्मास के उपलक्ष्य में मिडिल स्कूल मैदान के समीप जैन भवन में आयोजित धर्मसभा में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि संसार की किसी भी घटना से मन विचलित नहीं होना चाहिए। हर परिस्थिति में तटस्थ रहना चाहिए। जीव कर्म के अधिन होता है। यह विचार जितने मजबूत होंगे इतना ही साक्षी भाव मजबूत होगा साधु सदैव अलंकारी होता है श्रावक सदैव अलंकार होता है।
और सब खूब हंसे-
धर्म सभा में श्रावक श्राविकाओं द्वारा धर्म अध्यात्म से जुड़े प्रतिदिन पत्रक पर प्रश्न प्रेषित किए जा रहे हैं जिनका जवाब आचार्य श्री द्वारा प्रदान किया जा रहा है। प्रश्न मंच का पत्रक प्रश्न खोले तो गुरुदेव के समक्ष इतने सारे प्रश्न आ गए हैं तब उन्होंने कहा कि इन प्रश्नों के उत्तर के लिए तो दो-तीन घंटे का विशेष सत्र रखना पड़ेगा तभी धर्म सभा में उपस्थित सभी श्रद्धालु जोर से हंस पड़े।