नीमच। पाप कर्म करने वाले सदैव पराजित होते हैं ।पाप की शुरुआत भी खराब होती है। अंत भी खराब होता है। पुण्य की शुरुआत कठिन होती है लेकिन अंत बहुत अच्छा होता है। पुण्य कर्म वाला सद्गति पाता है पाप कर्म वाले की दुर्गति होती है।
यह बातश्री जैन श्वेतांबर भीड़भंजन पार्श्वनाथ मंदिर ट्रस्ट श्री संघ नीमच के तत्वावधान में बंधू बेलडी पूज्य आचार्य श्री जिनचंद्र सागरजी मसा के शिष्य रत्न नूतन आचार्य श्री प्रसन्नचंद्र सागरजी मसा ने कही। वे चातुर्मास के उपलक्ष्य में मिडिल स्कूल मैदान के समीप जैन भवन में आयोजित धर्मसभा में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि संतों की सेवा करना श्रावक का कर्तव्य होता है।परमात्मा के शासन में पवित्रा आचार और विचार का बहुत महत्व होता है।मन कि ईच्छा के लिए पुण्य कर्म करते हैं तो आत्मा का कल्याण नहीं हो सकता। पवित्र चरित्र बिना आत्मा कल्याण नहीं हो सकता है। 50 वर्ष पूर्व मानव जीवन में बहुत संघर्ष था आज इतनी सुख-सुविधाओं के बाद भी मानव धर्म कर्म का पुण्य कर्म नहीं कर पा रहा है चिंतन का विषय है। नास्तिक यदि त्याग धर्म करे तो उसे भी स्वर्ग मिल सकता है।श्री संघ अध्यक्ष अनिल नागौरी ने बताया कि धर्मसभा में तपस्वी मुनिराज श्री पावनचंद्र सागरजी मसा एवं पूज्य साध्वीजी श्री चंद्रकला श्रीजी मसा की शिष्या श्री भद्रपूर्णा श्रीजी मसा आदि ठाणा 4 का भी चातुर्मासिक सानिध्य मिला।पूज्य आचार्य भगवंत का आचार्य पदवी के बाद प्रथम चातुर्मास नीमच में हो रहा है। उपवास, एकासना, बियासना, तेला, आदि तपस्या के ठाठ लग रहे है। धर्मसभा में जावद ,जीरन, मनासा, नयागांव, जमुनिया,जावी, आदि क्षेत्रों से श्रद्धालु भक्त सहभागी बने। धर्मसभा का संचालन सचिव मनीष कोठारी ने किया।