नीमच। संसार में जितने भी अच्छे व्यक्ति हुए हैं उन्होंने अपने अंदर का डर निकाला है ।साहस पूर्वक कार्य करने से ही व्यक्ति महान बनता है। डरपोक कोई काम नहीं कर पाता है। डर के घर में आलस बैठा रहता है। यदि जीवन में सफल होना है तो नियमों के पालन में डरपोक नहीं साहसी बनना होगा। तभी हमारी आत्मा का कल्याण हो सकता है।धन वैभव से नहीं साहस के साथ तपस्या करने से ही व्यक्ति महान बनता है। यह बात जैन दिवाकरीय श्रमण संघीय, पूज्य प्रवर्तक, कविरत्न श्री विजयमुनिजी म. सा. ने कही। वे श्री वर्धमान जैन स्थानकवासी श्रावक संघ के तत्वावधान में गांधी वाटिका के सामने जैन दिवाकर भवन में आयोजित चातुर्मास धर्म सभा में बोल रहे थे।
उन्होंने कहा कि डर का कोई भविष्य नहीं है ।त्याग और वैराग्य के मार्ग पर चलने के लिए भी निडर बनना आवश्यक है। डर हमें अक्रमण्य और आलसी बनाता है इससे बचना चाहिए साइकिल चलाने व्यक्ति चलने वाला व्यक्ति भी निडर रहता है तभी आगे चलकर हवाई जहाज उड़ने वाला पायलट बन सकता है। साहस सफलता की महत्वपूर्ण सीढ़ी है इसके सहारे व्यक्ति कठिन से कठिन तपस्या सफलता अर्जित कर सकता है। भगवान महावीर स्वामी ने 14वें उत्तराध्ययन सूत्र विषय के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा था कि व्यक्ति धन दौलत से नहीं त्याग तपस्या से महान बनता है। अहिंसा तब संयम की त्रिवेणी में स्नान करने वाला व्यक्ति अपने जीवन को उन्नत बना सकता है।धन दौलत भौतिक संपदा जीवन यापन के साधन है ना कि साध्य साधना करने लायक नहीं है।
संयम सहनशीलता तप को जीवन में आत्मसात करना चाहिए तभी हम संसार से विरक्त हो सकेंगे। महावीर स्वामी ने अंतिम देशना में आत्म कल्याण का संदेश दिया है। इसका पालन सभी को करना चाहिए। प्रवर्तक विजय मुनि जी महाराज साहब ने आचार्य हुक्मीचंद जी महाराज साहब की 202वां दीक्षा उत्सव के उपलक्ष में आचार्य श्री को स्मरण करते हुए कहा कि महावीर स्वामी ने अपने उपदेशों को पहले आत्मसात किया उसके बाद मार्गदर्शन प्रदान किया था। उत्सव के पावन उपलक्ष्य में चौथमल जी महाराज साहब द्वारा आचार्य हुकमीचंद जी के जीवन चरित्र पर आधारित रचित छंद के साथ जाप का वाचन किया गया।तपस्या उपवास के साथ नवकार महामंत्र भक्तामर पाठ वाचन ,शांति जाप एवं तप की आराधना भी हुई।सभी समाजजन उत्साह के साथ भाग लेकर तपस्या के साथ अपने आत्म कल्याण का मार्ग प्राप्त कर रहे हैं।चतुर्विद संघ की उपस्थिति में चतुर्मास काल तपस्या साधना निरंतर प्रवाहित हो रही है। इस अवसर पर विभिन्न धार्मिक तपस्या पूर्ण होने पर सभी ने सामूहिक अनुमोदना की।
धर्म सभा में उपप्रवर्तक श्री चन्द्रेशमुनिजी म. सा, अभिजीतमुनिजी म. सा., अरिहंतमुनिजी म. सा., ठाणा 4 व अरिहंत आराधिका तपस्विनी श्री विजया श्रीजी म. सा. आदि ठाणा का सानिध्य मिला। चातुर्मासिक मंगल धर्मसभा में सैकड़ों समाज जनों ने बड़ी संख्या में उत्साह के साथ भाग लिया और संत दर्शन कर आशीर्वाद ग्रहण किया। धर्म सभा का संचालन भंवरलाल देशलहरा ने किया।