चित्तौड़गढ़। संसार में किसी वस्तु का जब श्रृंगार किया जाता है तो वह वस्तु आकर्षण का केंद्र बन जाती है। श्रद्धा उत्पन्न होने से व्यक्ति का अंतःकरण साफ होता है उसके लिए संत समागम जरूरी है मन रूपी कपड़े का मेल केवल सत्संग से ही साफ हो सकता है। उक्त विचार रामस्नेही संत दिग्विजय राम जी ने यहां संत रमताराम जी के सानिध्य में आयोजित प्रवचन माला में व्यक्त किए।
उन्होंने कहा कि भगवान की कथा श्रवण करने से अंतःकरण का मैल साफ हो जाता है व्यक्ति का सबसे बड़ा मेल उसका अहंकार है और अहंकार भक्ति में सबसे बड़ी बाधा है स व्यक्ति संसार में जिस चीज का अहंकार करता है जबकि वह चीज इस संसार में है ही नहीं स ईश्वर की इच्छा बिना एक पत्ता भी नहीं हिल सकता है। व्यक्ति सोचता है कि यह काम मैं कर रहा हूं य़ह मैंने किया है लेकिन सच्चाई यह है कि उस व्यक्ति के जाने के बाद य़ह संसार वैसे ही चलता है जैसा चल रहा था स व्यक्ति को ईश्वर खोजने से प्राप्त नहीं होता है केवल अपने अंतरू में खो जाने से ईश्वर मिलता है स भगवान राम जब वनवास से आए तो मां कौशल्या ने कहा था कि हे राम तुमने रावण को मारा तो भगवान ने यह कहा माता मैंने रावण को नहीं मारा बल्कि उसके मैं ने मारा था यानी रावण को अपने ज्ञान का अभिमान था और भगवान राम को अभियान का ज्ञान था भगवान राम ने कभी जीवन में अभिमान नहीं किया था स जिस व्यक्ति में सब्र व धर्म है वही सबरी है जिस दिन हमारे मन में सब्र आ जाएगा उस दिन ईश्वर स्वयं चलकर हमारे पास आएंगे स जीवन में कभी किसी भी वस्तु का अभिमान व्यक्ति को नहीं करना चाहिए करोड़पति कब रोड़पति हो जाता है इसका मालूम भी नहीं चलता है आदमी में मैं का भाव नहीं आना चाहिए।
उन्होंने कहा सत्ता, संपत्ति, सौंदर्य, रूप, यौवन, शरीर का अहंकार व्यक्ति को नहीं करना चाहिए क्योंकि एक मजदूर की चीता की राख व सेठ की चिता की राख में कोई अंतर नहीं होता जिस दिन शरीर में चेतना समाप्त हो जाएगी उसे दिन यह शरीर नाशवान हो जाता है यही है संसार की हकीकत तो फिर इंसान घमंड किस बात का करता है इस संसार में कुछ भी अपना नहीं है। ज्ञानी व अज्ञानी व्यक्ति को समझाया जा सकता है लेकिन अभिमानी व्यक्ति को समझाया नहीं जा सकता, अभियान के कारण ही घर परिवार समाज टूट रहे हैं व्यक्ति के पतन का मुख्य कारण उसका अभिमान है व्यक्ति को यदि अपने ज्ञान का अभिमान है तो भी उसको ईश्वर प्राप्त नहीं होता है स कथा सुनते वक्त तन मन लगाकर कथा सुनना चाहिए यदि मन एकाग्र नहीं है तो कथा सुनने का कोई लाभ नहीं होता है जैसे कि धोबी का कुत्ता घर का ना घाट का जीवन में यदि कथा को उतरोगे तो लाभ मिलेगा यानी कथा श्रवण के साथ - साथ कथा पर मनन भी करना चाहिए।