नीमच। हर शहर की व्यवस्थित बसावट, विकास को ध्यान में रखते हुए बेहतर योजना तैयार की जाती है, जिसे मास्टर प्लान कहा जाता है। नीमच शहर की विडंबना यह है कि यहां पर पिछले 20 वर्ष से भी अधिक अवधि में जो भी मास्टर प्लान बने हैं उनके अनुसार 30 प्रतिशत काम भी जमीन पर नहीं उतरे हैं। यानि योजनाओं पर योजनाएं बनती जा रही हैं, लेकिन उनके अनुसार काम देखने को नहीं मिल रहे हैं। मास्टर प्लान बनाने का काम भले ही टाउन एंड कंट्री प्लानिंग का हो लेकिन योजनाओं को रूप देने का जिम्मा प्रशासन के साथ ही संबंधित नगरीय निकाय का होता है।
जिला योजना समिति के पूर्व सदस्य डॉ पृथ्वीसिंह वर्मा ने अपने एक बयान मे कहा तथा आरोप लगाया कि शिवराज सरकार के राज मे नीमच जिले मे विकास धीमी गति से चल रहा है, दावे आपत्ति के बाद भी मास्टर प्लान आज भी धरातल पर नही आया है, नीमच जिले के विकास कि योजनाए केवल कागजो मे बन रही है। उन्होंने बताया कि मास्टर प्लान की अवधि समाप्त होने के बाद नया मास्टर प्लान 2013 में बनकर तैयार हुआ। बड़ी मशक्कत के बाद इसे जिला प्रशासन और टाउन एंड कंट्री प्लानिंग द्वारा अंतिम रूप दिया गया। दावे आपत्तियों के निराकरण के बाद प्लान पर मुहर लगी और इसे स्वीकृति के लिए 2014 में भोपाल भेज दिया गया। लेकिन इसे स्वीकृति मिलने में ही तीन वर्ष का समय बीत गया। 2011 के बाद से 2031 तक की संभावनाओं से लबरेज मास्टर प्लान 2017 अंत में स्वीकृत होकर आया, 2018 से मास्टर प्लान के अनुसार स्वीकृतियां दी गई, लेकिन पुराने और नए मास्टर प्लान में जो-जो कार्ययोजनाएं दर्शायी गई हैं वे धरातल से नदारद हैं। दावे आपत्ति सुनी गई। ज्ञात हुआ कि दो सौ से अधिक सुझाव आपत्ति आई थी, लेकिन केवल 14 आपत्ति सुझाव पर ही नाम मात्र का संशोधन हुआ है, 1931 का जो मास्टर प्लान था उसे 1935 कर दिया गया है।
पृथ्वीसिंह वर्मा ने बताया कि कृषि उपज मंडी तथा ट्रांसपोर्ट नगर चंगेरा मे रहेगे वर्तमान मे मास्टर प्लान के तहत अंबेडकर मार्ग कर्मशील के रूप मे है। शहर के चारों तरफ पुराने नाले बहते हैं। मास्टर प्लान दर्शाता है कि इन नालों का गहरीकरण, चौड़ीकरण के साथ ही सौंदर्यीकरण किया जाए। यही नहीं नालों पर वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट लगाने का भी प्रावधान किया गया या नही। किसी भी नाले ने अब तक केनाल का आकार नहीं लिया है। सौंदर्यीकरण के नाम पर कई बगीचे लावारिस है । वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट से नालों का पानी शुद्धकर के उपयोग करने की बात सपना ही बना हुआ है। इन नालों के किनारे सौंदर्यीकरण के लिए सुंदर पेड़ पौधे लगाने के साथ भ्रमण के लिए पाथ-वे बनाने की भी योजना दर्शाई गई थी, परंतु यह बरसों से योजना ही है।
शहर में महू रोड़ पर पुराने समय से ही अधिकांश ऑटो मोबाइल्स वर्क शॉप हैं। चूंकि फोरलेन के निर्माण के पहले शहर के बीच से ही महू-नीमच-नसीराबाद हाईवे मुख्य था। इस मार्ग पर ही भारी वाहनों की आवाजाही होती थी। ऐसे में अधिकांश वाहन महू रोड़ पर ही ठीक होने आते रहे हैं। इधर शहर के बीच में कई ट्रांसपोर्ट संचालित होते हैं। शहर के बीच मोहल्लों, बाजारों में ऐसे ट्रांसपोर्ट हैं जहां पर भारी वाहन सीधे पहुंचते हैं। इन स्थितियों को देखते हुए वर्ष 2011 के पहले और बाद के मास्टर प्लान में मैकेनिक नगर और ट्रांसपोर्टनगर शहर के सघन इलाके से बाहर प्रस्तावित किए गए थे ।
शहर में जितने भी व्यावसायिक भवन हैं उनमें से अधिकांश में पार्किंग की ठीक व्यवस्था है ही नहीं। यहां तक कि शहर में सार्वजनिक पार्किंग का एक स्थान टैगोर मार्ग पर ही केवल दुरस्त हो सका है लेकिन उसका भी सही स्वरूप में उपयोग नहीं हो रहा है। यहां पर आसपास के रहवासी अपने वाहन खड़े करते हैं। जो व्यावसायिक और अन्य बड़ी ईमारतें हैं उनमें भी पार्किंग की व्यवस्थाएं नहीं हैं। जबकि मास्टर प्लान के अनुसार हर ईमारत में पार्किंग होना आवश्यक है। यहां तक कि आधे शहर के भवन और बड़ी ईमारतों के निर्माण के समय इस बात को तक नजरअंदाज किया गया है कि एक दूसरे भवन के बीच खाली जगह होना चाहिए।
मास्टर प्लान में दर्शाया गया था कि शहर के आसपास के गावों को जोड़ने के लिए बेहतर सड़कें बनाई जाना है। लेकिन शहर के नीमच सिटी से जुड़े गांवो के लिए अब भी कच्ची सड़के हैं, बघाना क्षेत्र से गावों की तरफ अधिकांश कच्चे रास्ते ही जा रहे हैं। अधिकांश गावों की एप्रोच रोड़ कच्ची है। पूर्व के मास्टर प्लान से निर्धारित रिंग रोड़ अब तक अस्तित्व में नहीं आ सका है।
सुझाव मे उल्लेख था कि रिंगरोड रावत खेड़ा के समीप से निकाला जाना चाहिए, ज्ञात हुआ है कि नीमच मे चंबल का पानी लाने कि योजना को मास्टर प्लान मे शामिल नही किया गया है, मास्टर प्लान के तहत 14 गांवो को शामिल किया है।
मास्टर प्लान के अनुसार किसी भी शहर का विकास होना चाहिए। मास्टर प्लान भविष्य की संभावनाओं और आवश्यकताओं के मद्देनजर बनाया जाता है। लेकिन मास्टर प्लान के अनुसार योजनाएं क्रियान्वित करना केवल शासन, प्रशासन और निकाय की रूचि पर निर्भर करता है। फिर भी नए मास्टर प्लान के अनुसार योजनाओं को आकार देने की कोशिशें की जाएंगी। डॉ पृथ्वीसिंह वर्मा ने जिला कलेक्टर से मांग कि है कि मास्टर प्लान को सार्वजनिक किया जाना चाहिए।