दौलत के चाहतों में मजबूर हो गए हैं
रिश्ते करीब वाले सब दूर हो गए हैं
मुंह फेर ले रहे सब मतलब निकल गया तो,
अहबाब यार कितने मगरूर हो गए हैं
हमदर्द बनके हमने कितनों का दर्द बांटा
खुदगर्ज नाम से हम मशहूर हो गए हैं
हमने न जाने कितने अरमान थे सजाए
पर सारे मेरे अरमा अब चूर हो गए हैं
अब अंकिता जहां में दिखता नहीं मसीहा,
युग के परोपकारी अब क्रूर हो गए हैं।