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April 16, 2023, 5:57 pm
BIG NEWS : एमपी में आरएसएस की चुनावी चौसर पर सोश्यल इंजीनियरिंग का दांव, पढ़े जर्नलिस्ट मुस्तफा हुसैन की ये ख़ास रिपोर्ट

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एमपी में विधानसभा चुनाव की रणभेरी बज चुकी है, ये अलग बात है कि सामान्य आँखों से सबकुछ सामान्य दिख रहा है, लेकिन सही मायने में ऐसा है नहीं। राज्य की दोनों प्रमुख राजनैतिक पार्टिया ज़ीरो टॉलरेंस पर चुनाव की तैयारियों में लग चुकी है। कांग्रेस की बात की जाए तो उसने प्रदेश की 230 सीटों में से आधे पर अपने उम्मीदवार के नाम तक तय कर लिए हैं और बीजेपी की बात की जाए तो उसका सपना है अबकी बार 200 पार, जिसके लिए केंद्रीय भूमिका में पूरी तरह आरएसएस आ चुकी है। संघ ही अंदर खाने चुनाव की पूरी बिसात बिछाने की तैयारी कर रहा है। 
जानकारों की माने तो संघ ने यह फार्मूला निकाला है कि भ्रष्टाचार, अहंकार और जनता से दूरी बनाने वाले भाजपाइयों को अबकी बार सत्ता से दूर कर दिया जाए। भले ही वह तीसरी बार या चौथी बार के विधायक हो इसी लाइन को केंद्र बिंदु में रखकर संघ ने चौसर बिछाना शुरू कर दी है।

इसी के लिए संघ ने एक फार्मूला और तय किया है। वह यह की अबकी बार 15 से 20 प्रतिशत टिकिट ऐसे लोगों को दिए जाए जो सामाजिक क्षेत्र में काम करते हैं ताकि सोश्यल इंजीनियरिंग के तहत सीटों को निकाला जा सके। इसके लिए भी संघ की मजबूत टीम ने समूचे प्रदेश में उम्मीदवारों को चिन्हित करना शुरू कर दिया है।

एक और ख़ास बात यह की एमपी दलित और आदिवासी वोट निर्णायक भूमिका में है। उसी का परिणाम है कि बीजेपी की बिनाका गीत माला पर पिछले दो साल से दलित- आदिवासियों को रिझाने के गीत बज रहे हैं। सरकार की तमाम योजनाओं का पिटारा भी इन्हीं समाजों पर केंद्रित है। जैसा की सबको पता है प्रदेश में 47 सीटों पर आदिवासी और 35 सीटों पर दलित वोट निर्णायक भूमिका में हैं। ऐसे में ये 82 सीट जिस पार्टी की झोली में जाती है वो सरकार बनाने की ताकत पा जाएगा। इन्हीं आदिवासी वोटांे को अपनी तरफ करने के लिए संघ ने लम्बे समय से आदिवासी अंचल में अपने सेवा प्रकल्प चलाये हुए हैं। उसके सैंकड़ों स्वयं सेवक इन अंचलों में डेरा डाले हुए हैं।

कुल मिलाकर भाजपा जहां संघ और सत्ता के आसरे यह सेमीफाइनल जितना चाहती है तो कांग्रेस में कमलनाथ और दिग्गी राजा पूरे चुनाव अभियान की कमान संभाले हुए हैं। ये दोनों ही नेता अपने पुराने अनुभवों के आधार पर एमपी में सत्ता में वापसी की पटकथा लिख रहे हैं, एक तरफ भाजपा के पास मजबूत संगठन और संघ के अनुशासित सिपाहियों की फौज है। वहीं कांग्रेस पूरी तरह मतदाताओं के भरोसे चुनाव की तैयारी में लगी है।

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