डेस्क। तीन साल पहले का समय और प्रदेश में कांग्रेस की सरकार। सबकुछ कांग्रेस के मुताबिक ठीक चल रहा था तभी अचानक तत्कालीन कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपनी उपेक्षा का हवाला देते हुए तख्तापलट कर दिया। उनके साथ 22 विधायकों ने कांग्रेस छोड़कर बीजेपी की सदस्यता ले ली। इसके बाद हुए उपचुनाव के बाद फिर मप्र में भाजपा सत्ता में आ गई। सिंधिया के बीजेपी में आने के बाद अब तक 29 विधायक बीजेपी में शामिल हो चुके हैं।
लेकिन जिन 22 विधायकों ने कांग्रेस छोड़कर भाजपा ज्वाइन की थी वहां अब भाजपा के पुराने नेता खुद को ठगा सा और अकेला महसूस कर रहे हैं। बीजेपी के पुराने कार्यकर्ता उपेक्षित हैं। दलबदल वाली इन सीटों पर चुनावी साल में टिकट मिलने की उम्मीद खत्म होने के बाद भाजपा के पुराने नेता अपने लिए नया राजनीतिक ठिकाना खोज रहे हैं।
भाजपा में बगावत का ये तूफान कर्नाटक के बाद छत्तीसगढ़ होता हुआ एमपी तक आ गया है। इस तूफान के कारण भाजपा के दिग्गज नेता पूर्व मंत्री दीपक जोशी ने कांग्रेस ज्वाइन करने के साफ़ संकेत दे दिए है। वो कुछ ही दिनों में प्रदेश कांग्रेस कार्यालय पहुंचकर पीसीसी चीफ कमलनाथ के सामने कांग्रेस की सदस्यता लेंगे।
वहीं दीपक जोशी के इस कदम ने प्रदेश भाजपा में बगावत के सुर को और हवा देने का काम किया है। भाजपा संस्थापक और पूर्व प्रधानमत्री अटल बिहारी वाजपेयी के भांजे अनूप मिश्रा का मन भी अब भाजपा से भरता दिख रहा है। उन्होंने अगला विधानसभा चुनाव लड़ने का खुलकर एलान कर दिया है। लेकिन भाजपा संगठन उन्हें टिकिट दे ऐसी सम्भावना नहीं बन रही है। क्योंकि भितरवार सीट से पहले वे भाजपा से चुनाव लड़ चुके है लेकिन हार का मुँह देखना पड़ा। संगठन में तवज्जो नहीं मिलने के कारण मिश्रा के सुर भी बगावती होते जा रहे है। नेता प्रतिपक्ष और वरिष्ठ कांग्रेस नेता गोविन्द सिंह ने मिश्रा को कांग्रेस ज्वाइन करने का ऑफर भी दे दिया है।
इसके साथ ही अपेक्स बैंक के पूर्व अध्यक्ष और बदनावर से विधायक रहे भंवर सिंह शेखावत भी विधानसभा चुनाव लड़ने का पूरा मन बना चुके है। लेकिन उनके सामने समस्या है मंत्री राजवर्धन सिंह दत्तीगांव। जो सिंधिया के साथ भाजपा में आए। अब भाजपा मंत्री का टिकिट तो काट नहीं सकती। ऐसे हालातों में शेखावत भी खुद को ठगा और अकेला मेहसुस कर रहे है।
ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में चले जाने के बाद भाजपा के पुराने नेता और कार्यकर्ता दलबदल वाली इन सीटों पर चुनावी साल में टिकट मिलने की उम्मीद खत्म होने के बाद अपने लिए नया राजनीतिक ठिकाना खोज रहे हैं। अब देखना है कि सिंधिया की प्रभाव वाली सीटों पर भाजपा संगठन और संघ अपने कार्यकर्ताओं और नेताओं को कैसे मना पाती है।