सीएम शिवराज सिंह चौहान ने नीमच जिले के बाद मंदसौर में भी तमाम प्रशासनिक व्यवस्थाओं के तहत जनसभा कर ली। पिछले कुछ महीनों में ख़ासकर जब से सीएम ने लाड़ली लक्ष्मी योजना लागू की है उनका फोकस पूरी तरह इसी बात पर है कि वे अपनी सभाओं में प्रदेश की आधी आबादी को फोकस करें। यदि ये आधी आबादी का वोट उनकी झोली में आ जाता है तो एमपी की सत्ता में वे आसानी से वापसी कर पाएंगे, फिर इस आधी आबादी में एससीएसटी, ओबीसी, अगड़े, पिछड़े, किसान, मुआवजा, फसल बीमा जैसी तमाम झंझट नहीं है। लाड़ली लक्ष्मी में समूची आधी आबादी कवर हो जाती है, फिर वो हिन्दू हो या मुसलमान इसलिए सीएम शिवराज हर जगह अपने स्पीच का सबसे ज़्यादा समय महिलाओं पर बोलने में खर्च कर रहे हैं।
लेकिन सवाल यह उठता है कि लाड़ली लक्ष्मी योजना के आसरे सीएम शिवराज फिर सत्ता में वापसी कर पाएंगे। यदि हम पीछे देखे तो हम पाएंगे की एक चुनाव में सीएम शिवराज मामा बने, फिर वे किसान हो गए और उन्होंने समूचे प्रदेश के किसानों को यह मेसेज दिया की वे उनके सबसे बड़े मददगार है तब से उनकी राजनीति किसानों के आसपास घूमती रही और साथ में वे ओबीसी समाज के बड़े नेता हो गए पार्टी में भी उनके खिलाफ किसी भी प्रकार की चुनौती नहीं बची यह सब पिछले विधानसभा चुनाव तक तो ठीक चला लेकिन उसके बाद सब कुछ वैसा नहीं रहा।
पिछली बार जब चुनाव हुए तो ओबीसी समाज काफी हद तक कांग्रेस के पाले में चला गया और दूसरा आदिवासी समाज जिनके प्रभाव वाली एमपी में 41 सीट है ये दो वर्ग पूरी तरह खेती किसानी से जुड़े। एमपी में जब कमलनाथ से भाजपा ने सत्ता छीनी तो आदिवासियों को अपने पाले में लाने के लिए सीएम शिवराज ने सारे जतन किये। लेकिन जय आदिवासी युवा संगठन की चुनौती अभी बरकरार है। यहां तक की उन्होंने अन्य छोटे दलों से गठबंधन कर के पूरे प्रदेश में चुनाव लड़ने का एलान कर दिया है वे वक्त ज़रूरत अपनी ताकत दिखाने में भी पीछे नहीं रह रहे उनके अंदाज़ से साफ़ है वे बीजेपी के साथ नहीं जाएंगे और यदि ओबीसी समाज की बात करें तो इस समाज से जुड़ा किसानी तबका फसल नुकसानी, राहत राशि और मुआवजे जैसे मामलो के चलते बीजेपी के उतना करीब नहीं दिखाई देता। इन्ही परिस्तिथियों के बीच सीएम शिवराज ने मामा की जगह अब भैया का अवतार चुना है और उन्होंने लाड़ली बहना योजना को लांच किया और उसी पर फोकस रख कर अपना केम्पेन चला रहे हैं पर सवाल यह उठता है कि सीएम का भैया वाला यह अवतार एमपी की आधी आबादी के गले उतरेगा या नहीं।
इसके अलावा इस चुनाव में सीएम शिवराज के सामने बीजेपी में भी अंदर खाने कई चुनौतिया पैदा हो चुकी है और सबसे बड़ा सिंधिया फेक्टर है जो ग्वालियर - चंबल एवं मालवा में बड़ी ताकत में है। अब जो लोग सिंधिया के साथ बीजेपी में टिकिट की आस में आ गए उनको नहीं अवेरा तो वो चुप नहीं बैठेंगे और यदि उनको बीजेपी नेताओं पर तरजीह दी गयी तो बीजेपी के नेता दीपक जोशी की राह पर चल निकलेंगे।
इन्हीं सब उठा पटक के बीच सीएम शिवराज को सत्ता में वापसी की राह तलाशनी है जो फिलहाल इतनी आसान नहीं दिखती क्योकि जो पार्टी के सिटिंग विधायक और मंत्री है उनके खिलाफ भी एंटी इंकम्बेंसी कुछ कम नहीं दिखता। कई सीटों पर तो भाजपाई यह मन्नत मांग रहे हैं कि वापस इन्हीं को टिकिट मिले, ताकि दिल खोलकर हिसाब चुकता किया जा सके। इन तमाम चुनौतियों के बीच सीएम शिवराज लाड़ली लक्ष्मी योजना के आसरे वोटो की जुगाड़ में है अब इसमें वे कितने सफल होंगे यह चुनाव के नतीजे बताएंगे।