नीमच। पूर्व विधायक डॉ. सम्पत स्वरूप जाजू ने एक बयान जारी करते हुए हका कि केंद्र सरकार का नरकोटिक्स विभाग प्रत्येक वर्ष अफ़ीम नीति की घोषणा करने के पहले अफ़ीम सलाहकार समिति की बैठक कर ज़िम्मेदार जनप्रतिनिधियों से सुझाव मांगती हैं। सलाहकार समिति के दिये सुझावों पर गंभीरता से सरकार ध्यान देती ही नहीं हैं और ना ही अमल करती हैं। सलाहकार समिति की बैठक केवल एक औपचारिक बैठक बनकर रह जाती हैं।
डाक्टर जाजू ने कहा कि धरातल पर जो अफ़ीम उत्पादक कृषकों की व्यावहारिक मांग होती हैं को सरकार कभी भी गंभीरता से नहीं लेती हैं। डाक्टर जाजू ने कहा कि प्रत्येक वर्ष सरकारी प्रतिक्रिया के तहत समिति की बैठक आयोजित की जाती हैं। स्थानीय जनप्रतिनिधि बैठक में बढ़चढ़ कर सहभागिता निभाते हैं और बैठक के बाद मीडिया ( प्रिंट , इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया) के माध्यम से अपनी अपनी बात रख कर अफ़ीम उत्पादक किसानों को सरकार से उनकी मांग को मनवाने की बात करते हैं यह प्रतिक्रिया वर्षों से चल रही हैं।
डाक्टर जाजू ने कहा कि दुर्भाग्य हैं कि जिस दिल्ली स्थित केंद्रीय सरकार के वित्त मंत्रालय द्वारा अफ़ीम नीति बनाई जाती हैं। वहां क्षेत्र के ज़िम्मेदार जनप्रतिनिधि बोने हो जाते हैं अफ़ीम कृषकों की मांगों को रद्दी की टोकरी में डाल देते हैं फिर जब अफ़ीम नीति घोषित हो जाती हैं तो मजबूरी में अपनी पोजिशन को बनाये रखने के लिये ज़िम्मेदार जनप्रतिनिधि भ्रमित बयान दे कर पल्ला झाड़ लेते हैं।
डाक्टर जाजू ने कहा कि अफ़ीम उत्पादक कृषकों की मांग को दो हिस्से में विभाजित कर देखना पड़ेगा
१- अफ़ीम उत्पादन करने के तरीक़े और अफ़ीम फसल से उत्पादित फ़सलो की लागत मूल्य एवम् प्राकृतिक आपदा पर उत्पादक कृषक को राहत
२-अफ़ीम उत्पादन और उसके प्रोडक्ट को लेकर बने क़ानून ( एनडीपीएस इत्यादि )में संशोधन कर अफ़ीम उत्पादक क्षेत्र के कृषको राहत
पहले बिंदू- प्रत्येक वर्ष अफ़ीम नीति की घोषणा केंद्रीय वित्त मंत्रालय द्वारा की जाती हैं। दुर्भाग्य हैं कि लंबे समय से अफ़ीम उत्पादक क्षेत्र के जनप्रतिंधि क्षेत्र के अफ़ीम उत्पादक किसानों को उनकी जायज माँगो पर निरंतर कई तरह के सब्जबाग दिखा रहे हैं लेकिन आज तक उनपर कोई सकारात्मक निर्णय नहीं हुए। जो अपेक्षायें जनप्रतिनिधियों से कृषकों को हैं वे उन अपेक्षाओं पर दूर दूर तक खरे नहीं उतरे।
द्वितीय बिंदू- अफ़ीम उत्पादन और उन पर बने क़ानूनों के संशोधन (एनडीपीएस इत्यादि एक्ट) का अफ़ीम की प्रत्येक वर्ष घोषित नीति से कोई लेना ना देना हैं। डाक्टर जाजू ने कहा की क़ानून में बदलाव संसद में होगा और उसके लिये सांसदों को सरकार पर तथ्यात्मक जानकारी रख क़ानून में संशोधन करवाना पड़ेगा। विगत लंबे समय से अफ़ीम उत्पादक क्षेत्र के सांसदों ने कानूनो में संशोधन या समाप्त करने के लिये क्या प्रयत्न किये दस वर्षों में कितनी बार क़ानूनों में बदलाव के बारे में केंद्र सरकार के सक्षम मंत्रालय के सम्मुख बात रखी और इन्हें सरकार ने किस गंभीरता से लेकर कार्यवाही की के बारे में अफ़ीम उत्पादक क्षेत्र के लोगो को बताने का दायित्व और कर्तव्य हैं।