एमपी में विधानसभा चुनाव की रणभेरी बज चुकी है। बिसात पर मोहरे जमाये जा रहे हैं, लेकिन प्रदेश की भाजपा में एक घटनाक्रम तेजी से घूमा है और वह यह की केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को किनारे किये जाने की खबरे सामने आ रही है और उसकी एक वजह भी बताई जा रही है।
महाराज सिंधिया जब अपने 23 विधायकों के साथ बीजेपी में आये थे तब यह माना जा रहा था कि अब एमपी में शिवराज युग की समाप्ति हो गयी और महाराज सिंधिया एमपी बीजेपी का नया चेहरा होंगे। उपचुनाव हुए और महाराज के 11 साथियों को मंत्री पद से नवाज़ा गया तब और साफ़ हो गया की एमपी में सबकुछ महाराज सिंधिया के हिसाब से चलेगा, लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं। महारज को केंद्रीय मंत्री बनने में भी लंबा इंतज़ार करना पड़ा और जिस उड्डयन मंत्रालय का उन्हें मंत्री बनाया गया उस विभाग का जमीन से सीधा कोई जुड़ाव नहीं है। साथ ही अधिकाँश बड़े हवाई अड्डे प्राइवेट हाथों में जा चुके है। इसके अलावा यह भी कहा गया था जो नेता महाराज के साथ बीजेपी में आये हैं उन्हें उस पद का सम्मान मिलेगा, जिस पद पर वे कांग्रेस में थे, लेकिन यह भी नहीं हुआ और महाराज समर्थक जिलों में अलग थलग होते देखे गए।
इस समय जब चुनाव की तैयारियां चल रही है तब यह माना जा रहा था की शायद अब बीजेपी महाराज को सीएम प्रोजेक्ट करेगी या फिर शिवराज सिंह चौहान को हटाकर कुछ समय के लिए उन्हें एमपी में सीएम बना दिया जाएगा और उनकी कमान में चुनाव लड़ा जाएगा, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। उलटा महाराज की गाड़ी रिवर्स में जाती नज़र आ रही है।
कर्नाटक चुनाव के बाद एमपी बीजेपी में एक बात तेजी से उठी की जिस करप्शन के मुद्दे पर कर्नाटक में सरकार गंवाई उसी मुद्दे पर एमपी में भी बीजेपी खिसक सकती है, और उसकी बड़ी वजह महाराज से जुड़े मंत्री है, जिनका नाम करप्शन के मामलो में अव्वल आ रहा है। पार्टी के भीतर इस मामले को हवा देना इसका मतलब है कि सीधे-सीधे महाराज को टारगेट करना। बात यह भी आयी की महाराज समर्थक मंत्री यदि चुनाव में उतरे तो करारी हार हो सकती है। इन्हीं सब बातों के आने के बाद महाराज का कद बीजेपी में अस्ताचल की और दिखाई दे रहा है और एक बार फिर शिवराज सिंह चौहान फ्रंट संभाले हुए हैं। ये अलग बात है कि बीजेपी में अंदर खाने एक बड़ा वर्ग मामा शिवराज के खिलाफ दिल्ली में लामबंद है और वह चाहता है कि चुनाव के पहले एमपी में नेतृत्व परिवर्तन करवा दिया जाए, लेकिन परिवर्तन की दशा में नाम महाराज का नहीं केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह और प्रहलाद पटेल का सामने आ रहा है।
इन्हीं सब परिस्थितियों के बीच जिलों में महाराज समर्थक नेताओं को भी अपना भविष्य खतरे में नज़र आ रहा है, क्योंकि मंत्रियों की जो सर्वे रिपोर्ट पार्टी आलाकमान के पास पहुंची है और वो सही है तो फिर महाराज समर्थकों को उतनी तरजीह न मिले ऐसे में बीजेपी में अंदरूनी उठापटक तेज हो गयी है।